हिन्दी कॉमिक्स इंडस्ट्रीज--यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है वह मेरी अपनी नहीं है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर आपको कोई परेशानी हो तो मुझे अवगत कराये.उस लेख को तुरंत हटा दिया जाएगा. मेरा उद्देश सिर्फ लोगो तक जानकारी पहुचाना है. अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। कॉमिक्स को खरीदिए, और कॉमिक्स इंडस्ट्री को सुरक्षित करें।
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Monday, 21 December 2020
भावपूर्ण श्रद्दांजलि
Saturday, 12 December 2020
Monday, 30 November 2020
मनोज गुप्ता जी की कलम से
प्री-बुकिंग वो धीमा जहर है, जो लगातार कामिक्स इंडस्ट्री को खोखला कर रहा है। कामिक्स के प्रति आपके जूनून और आपके कोमल भावनात्मक लगाव का शोषण है। आने वाले समय में किसी भी fraud का ये जन्मदाता सिध्द हो सकता है,इसे आदत मत बनाइये। प्री-बुकिंग के नाम पर आपकी गाढ़ी कमायी को जब पब्लिशर्स अपना हक समझने लगे,तो हालात बद् से बद्तर होते जाते हैं। पैसा जेब में आते ही काम करने की रफ्तार सुस्त हो जाती है। मानव स्वभाव है, कि वह उस काम को पहले करना चाहता है। जिसे करके पैसा मिलना है। जेब में आया पैसा टिकता नहीं, तुरंत खर्च हो जाता है। मैं पिछले लगभग 25 वर्षों से इस बुक इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ हूँ। हर पब्लिशर्स फाइनेंशियली strong हैं। प्री-बुकिंग का उन्हें केवल चस्का लगा हुआ है। जो कहीं कमजोर पड़ते भी हैं। उन्हें सेलर्स और डिस्ट्रब्यूटर्स स्पोर्ट करते रहते हैं। पिछले 10 महीनों में जो भी पुस्तकें छप कर आयी हैं, उनमें से क्या आप किसी एक पुस्तक का नाम बता सकते हैं, जो प्री-बुकिंग करके आपको कोई विशेष लाभ मिला। किताब आती है, सबके लिए भरपूर मात्रा में उपलब्ध होती है। उल्टा पब्लिशर्स पर क्वालिटी प्रेशर होता है, कि बाइडिंग, प्रिंटिंग, पेपर क्वालिटी सब पर फोकस रखना पड़ता है। समय पर लाने की कोशिश रहती है, क्योंकि पैसा लगा होता है।हम अपने जूनून को जिंदा रखे, ये तो सबसे बड़ा अमृत है। प्रकाशक को समझने में देर नहीं लगती, कि किताब का क्या हश्र होने वाला है।
बहुत जल्दी एक अन्य बहु-प्रतीक्षित प्रकाशन आपके सम्मुख होगा। मुझे नहीं लगता कि वो प्री-बुकिंग जैसी कोई भी बात करेगा, परंतु उसके नाम पर बाजार में होने वाली किसी भी प्री-बुकिंग से आप उसको स्पोर्ट करोगे, ये विचार ही हास्यपद है। पिछले कुछ दिनों में इसी तरह से एक बहुचर्चित और बहु-प्रतीक्षित कामिक्स की प्री-बुकिंग से आपने प्रकाशक को कितना स्पोर्ट किया, या क्या फायदा आपको मिला। आपने स्वयं महसूस किया है। बाकी आप स्वयं प्रबुद्ध पाठक हैं। मैं नाचीज आपको कोई रास्ता दिखा सकता हूँ, इस धोखे में बिल्कुल भी नहीं हूँ। क्योंकि, मन-आपका, पैसा-आपका,समझ-आपकी। पर हां...;
HBM never support Pre-Booking.
HBM never do Pre-Booking.
नोट- यदि किसी प्रकाशक या पाठक को मेरी किसी बात से ठेस पहुँची हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ ।
Friday, 27 November 2020
ड्रैकुला (व्यंग पोस्ट )😃😁😁😁😁😁
ड्रैकुला कौन था,और इसकी कल्पना किसने की ,उससे लिए चर्चा होगी।🤣🤣🤣🤣🤣🤣
मेरे अनुसार ड्रैकुला की कल्पना बच्चों को डराने के लिए की होगी ☺☺☺☺☺☺☺☺,लेकिन बच्चे डरे नही होंगे तो ,उसके शरीर का भी भयानक चित्रण किया गया होगा.जिससे बच्चों के साथ साथ बड़ो ने भी डरना शुरू कर दिया .☺☺☺☺☺☺(बड़ा ही शानदार लॉजिक दिया है..☺☺☺☺☺☺☺☺)
मेरे अनुसार ड्रेकुला की तुलना मच्छर से की जानी चाहिए ,क्यूंकि ड्रेकुला भी मच्छर की तरह खून पी कर अपना गुजारा बसर करता है ☺☺☺
बाकी बाद में लिखूगा ,हिंदी टाइप करना बहुत ही मुश्किल काम है बाबा
Saturday, 14 November 2020
कॉमिक्स प्रंशसको की कलम से लेख
***
उसकी आँखें किसी ने नहीं देखी!!खुद प्राण सर ने भी नही! अपने ज़माने का फुलटू मॉडर्न टीनएजर..आँखों को ढकते लंबे बाल, चुस्त-दुरुस्त काया, दिल्ली की गलियों में मस्ती करते फिरने वाला किशोर! क्रिकेट का दीवाना..फ्लिर्टी बॉयफ्रेंड...क्लास में स्लीपिंग मोड, दोस्तों का दोस्त, टेक्नो सैवी, मस्तमौला...उसके व्यक्तित्व के अनेक पहलू!
जी हाँ...अपना प्यारा शरारती, चतुर, डरपोक, भोला-भाला, मनमौजी..बिल्लू!!
प्राण सर का ये करैक्टर अपने आप में बहुत ही मजेदार और आकर्षक है! खास बात ये की केवल इसी करैक्टर को क्रोनोलॉजिकल आर्डर में बढ़ते दिखाया गया है...माने रियल लाइफ जैसा! शुरुवाती कॉमिक्स में नन्हा शरारती बच्चा बिल्लू है( कुछ कुछ पिंकी जैसा ही)! उसके रुझान भी बस खेल-कूद, आइसक्रीम, चॉकलेट, लुका-छुपी, स्कूल से बचने का बहाना, पापा की डांट का डर...इन्ही के इर्द-गिर्द घूमता। फिर धीरे धीरे बढ़ता बिल्लू...टीनएज यानि किशोरावस्था में पहुँचता! यहाँ से कहानियां ज़्यादा रोचक होतीं। लेटेस्ट फैशन में रहना, मोबाइल-कंप्यूटर में खटर-पटर में दिलचस्पी, रातों को हॉलीवुड मूवीज़ देखना, स्कूल में क्लास के वक़्त खर्राटे लेना, गर्लफ्रेंड जोज़ी के साथ मस्ती करना,और बेशक....हर वक्त क्रिकेट खेलने को तैयार रहना...ये सब उसके नए शौक व पसंद! इस तरह बिल्लू की कहानियों में कुछ बदलाव आये, जो अधिक मनोरंजक ही थे...ज़्यादातर कॉमिक हीरोज या तो वयस्क होते हैं या किड्स हीरोज। ऐसे में एक टीनएजर हीरो की ज़िन्दगी के किस्से देखने-पढ़ने में अपना मज़ा आता था!
हरदम कंधे पर शान से क्रिकेट बैट लिए, कैप पहने,दूसरे हाथ से बॉल उछालता हुआ आता दिखाई देता बिल्लू! क्रिकेट के मैदान का सितारा! अपनी सोसाइटी का स्टार बल्लेबाज़...चौके-छक्के उड़ाता।
दूसरी तरफ बजरंगी पहलवान से पंगे लेता, फिर उसे मूर्ख बनाता, जान बचाकर भागता या हड्डी-पसली तुड़वाता हुआ। रुस्तम-ऐ-हिन्द बजरंगी उस्ताद के डर से बचपन से किशोरावस्था तक डरता-भागता,और मन ही मन गबरू जवान बनके उसे मज़ा चखाने के ख्वाब देखता बिल्लू।
साथ ही साथ क्लासमेट और पडोसी जोज़ी के साथ रोमांस! कभी स्कूटर पर घुमाना या फ़ास्ट फ़ूड के लिए रेस्त्रां ले जाना, पर टीनएज की प्रॉब्लम से जूझता जेब में बस 50-100 का नोट होना..उस पर मन ही मन तिकड़म लगाना, गर्लफ्रेंड की नज़र में इज़्ज़त बनाये रखना..साथ साथ मौका मिलते ही स्कूल की नयी स्टूडेंट पर इम्प्रैशन ज़माने की कोशिश करने में भी पीछे न रहना...गर्लफ्रेंड को मालूम हो जाये तो खैर बचाकर भागना और बहाने बनाना...ये सब बिल्लू के चुलबुले किशोर स्वाभाव की झलकियाँ!
साथ ही कच्ची उम्र का मिडिल-क्लास, तंग-जेब मासूम आशिक़! अमीर कर्नल की बेटी से इश्क़ लड़ाता, खुर्राट कर्नल की नज़रों में फ़ालतू आवारा शरारती छोकरा! कर्नल की आँख बचाकर जोज़ी से मिलने उसके घर जाता...कर्नल की सख्त आवाज़ से उछल पड़ता, फिर रायफल की ..रेट रेट रेटटटट...निकलती गोलियों से सर झुकाकर बचता भागता बेचारा दिलफेंक आशिक़!
सब के सब किस्से मज़ेदार व खिलखिलाने वाले। अपने ज़माने के टिपिकल टीनएजर का प्रतिनिधि...शौक, कारनामे, इश्क़बाजी..सब कुछ! डायमंड कॉमिक्स में ये किरदार मुझे सबसे ज़्यादा पसंद होने की यही सब वजहें हैं...। अपने आप में एक मज़ेदार किरदार...आज भी बिल्लू कॉमिक्स पढ़ने में वही मज़ा आता है जो पहले! :)
Wednesday, 28 October 2020
कॉमिक्स प्रंशसको की कलम से लेख
संसार में सुख के सत्य की तलाश में सिकंदर ने ज़मीन नाप दी, बुद्ध ने गृह त्याग दिया. सुख पर लिखी किताबें बेस्टसेलर बन गयी और सुख पाने के चक्कर में जाने कितने घनचक्कर मारे - मारे फिरते हैं. सुख कमबख्त है कि मुहल्ले की सामूहिक महबूबा बना हुआ है, जो क्षण भर को छत पर कपड़े सुखाने के लिये आये और उस क्षण के इंतज़ार में मुहल्ले का लौण्डागण दिन भर धूप में विद्यमान विटामिन डी सोख सोख कर टैन होते चला जाये.
तो मालिकों सुख की तलाश में बियाबान-रेगिस्तान भटक चुकने के बाद अचानक रेल्वे स्टेशन पर एक कॉमिक पा कर खुशी से झूम जाने वाले उस बालक की याद आयी जो कभी हम स्वयं हुआ करते थे.
एक आठ रुपये की अदद कॉमिक पा कर कारूँ का खज़ानावाली जो फील आती थी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता. चिथड़ों में व्याप्त कॉमिक कम दामों में खरीद कर उसे किसी पुरातत्त्ववेत्ता वाली कुशलता से कभी सी कर, कभी स्टेप्लर मार कर पुनर्जीवित करने के सुख को भुला कर हम दुनिया के मायाजाल में ऐसे रमे कि भूल गये बण्डल बण्डल कॉमिक खरीद कर अलमारी सजा लेना सुख नहीं... सुख उन्हें बिखेर के फिर पढ़ने में है. फिर उन फटे कवर वाली कॉमिक्सों को देख कर याद करने में है कि इन्होंने हमारा कितना जीवन कैसे स्पेशल बनाया है इसलिये आज भी कॉमिक्स पढ़ना सच्चा सुख लगता है -
Wednesday, 14 October 2020
कॉमिक्स की दुनिया में जोड़ियों की सफलता का अध्य्यन
या यु कहिए कि हर एक कॉमिक्स करैक्टर के साथ उसका सहायक रहता था,जो हीरो के बराबर या कम होता था,जब कही हीरो फस जाता था तो उसका सहायक ही उसको वहां से निकालने में मदद करता था.
Sunday, 11 October 2020
कॉमिक्स_वाले_अंकल
#कॉमिक्स_वाले_अंकल
वो हमारे कॉमिक्स वाले अंकल थे। नाम तो उनका कभी पूछा नहीं। ये भी पता नहीं हिन्दू थे, मुसलमान थे या किस जाति से थे। ये सब बातें हमारे लिए बेमतलब बेमानी थीं। हम बच्चों को बस इतना ही पता था कि गली में उनकी छोटी सी दुकान थी। यूं दुकान तो किरयाने की थी, पर उसी के एक कोने में ढेर सारी कॉमिक्स भी रखी रहती थीं, और यही बात उनकी उस छोटी पुरानी सी दुकान को खास बनाती थी।
जब मम्मी पैसे देकर घर का कुछ सामान लाने को भेजती तो हम दूसरी बड़ी दुकानों को छोड़कर कॉमिक्स वाले अंकल की छोटी सी दुकान में घुस जाते। जब तक अंकल सामान तौलते तब तक हम कॉमिक्स उलट पलट कर देखते रहते। जाने कैसी खुशी मिलती थी वहां।
अंकल की दुकान पर ग्राहक कम ही होते थे। सब कहते थे उस पुरानी दुकान में कुछ घुटन सी रहती है। पता नही क्यों हमें वो घुटन कभी महसूस ही नहीं हुई। कभी जेबखर्च को कुछ पैसे मिलते तो लेकर हम सीधा अंकल की दुकान पर पहुंच जाते। उस वक्त वो 50 पैसे में कॉमिक्स किराये पर दिया करते थे। घर ले जाकर पढ़ने का एक रुपया लगता था। हम कम पैसो में ज़्यादा कॉमिक्स पढ़ने के लालच में वहीं बैठकर घण्टों कॉमिक्स पढ़ते रहते थे। वहीं बैठकर पढ़ने पर अंकल भी खुश रहते थे। शायद इससे उन्हें अकेलापन नहीं लगता था। गली की उस छोटी सी पुरानी दुकान में एक अलग ही किस्म का सुकून था।
वक्त बीत गया। हम बच्चे से बड़े हो गए। पुराना शहर भी छूट गया। कॉमिक्स का शौंक कुछ सालों के लिए पूरी तरह छूट कर फिर दोबारा भी शुरू हो गया। पर ज़िन्दगी की भागमभाग में उन सब यादों पर जैसे धूल की परत सी जम गई थी।
फिर अभी 2 साल पहले किसी काम से पुराने शहर जाना हुआ। तब फिरसे कॉमिक्स वाले अंकल और उनकी दुकान की याद आई। मन में वही पुरानी उमंगें लिए गली की उस सबसे पुरानी दुकान पर पहुंचा।
अंकल अब नहीं रहे। दुकान आंटी और उनका लड़का मिलकर सम्भालते हैं। एक कोने में कुछेक कॉमिक्स भी पडी धूल खा रही हैं। पर वो पहले जैसा सुकून नहीं है। मैं ज़्यादा देर दुकान में खड़ा नहीं रह सका। उस छोटी, पुरानी दुकान की घुटन अब महसूस होने लगी है।
नोट: तस्वीर केवल प्रतीकात्मक मात्र है।
डोगा ही है रियल हीरो....
डोगा ही है रियल हीरो....
आज की ये पोस्ट ये बताने के लिए है कि डोगा रियल हीरो क्यों है? नागराज और ध्रुव बहुत लोकप्रिय पात्र हैं लेकिन मुझे उनसे ज़्यादा डोगा पसन्द है। इसकी वजह है डोगा की कॉमिक्स की रियल स्टोरीज़।
अगर डोगा की स्टोरीज़ को नागराज और ध्रुव की कॉमिक्स से कम्पेयर करेंगे तो पता चलेगा कि डोगा की कॉमिक्स वास्तविकता के कितने करीब होती हैं। जो समस्याएं हम अक्सर न्यूज़ में या अखबारों में पढ़ते हैं, डोगा ऐसी ही समस्याओं को जड़ से उखाड़ता दिखाई देता है।
आप सब कॉमिक प्रेमियों को याद होगा कि जब नागराज शाकूरा के चक्रव्यूह में फंसा, नागपाशा द्वारा दिखाए गए सपनों के मंदिर का पीछा कर रहा था और ध्रुव सर्कस में स्टार फिश की मानसिक शक्तियों का सामना कर रहा था ...
तब डोगा बस में लगे स्पीड बम से 40 जिंदिगियों को बचाने की ज़बरदस्त जद्दोजहद कर रहा था।
जब नागराज और ध्रुव परग्रहीयों के हमले से राजनगर की तबाही होने से रोक रहे थे....
तब डोगा सिंथेटिक दूध बनाने वाली फैक्ट्री को नेस्तनाबूद कर रहा था। (कायर, हाथ और हथियार)
जब नागराज और ध्रुव विषाला की प्रलय से दुनिया को बचा रहे थे...
तब डोगा एग्जाम का पेपर लीक करने वाले शोला गैंग को सबक सिखा रहा था। (मारा गया डोगा, मरेंगे डोगा के दुश्मन)
जब नागराज और ध्रुव कल्कि अवतार और मसीहा को दुनिया में विनाश फैलाने से रोक रहे थे...
तब डोगा भिखारियों को मौत के घाट उतारने वाले हत्यारे के लिए मृत्युदाता बना हुआ था और दलित नेता का अपमान करने के इल्जाम से खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था। (डोगा को गाड़ो)
जब नागराज और ध्रुव देवताओं की मदद कर रहे थे जिससे दुनिया में हमेशा के लिए कलियुग व्याप्त न हो...
तब डोगा करवाचौथ सुहागनों पर मंडराता खून का खतरा खत्म कर रहा था।
इसके अलावा भी...
कभी डोगा नवजात बच्ची को कार के टायर से कुचलने वाले गोलू को चार किलोमीटर आगे जाकर सज़ा दे रहा था।
तो कभी डोगा रक्तदान करके हिन्दू मुस्लिम फसाद को खत्म करने की कोशिश में लगा था। (डोगा हिन्दू है सीरीज़)
कभी डोगा बूढ़े लोगों पर खतरा बने युवा को खत्म कर रहा था। (वृद्ध वॉरियर सीरीज़)
और कभी डोगा करोड़ो की संपत्ति के मालिक 18 वर्षीय कुमार सक्षम की अंडरवर्ल्ड से हिफाज़त कर रहा था।
अब आपको पता चल ही गया होगा कि डोगा क्यों है रियल हीरो क्योंकि "*डोगा है ही ऐसी चीज़*"।
एक बहस जिसका ना कोई आधार ना कोई अन्त....
एक बहस जिसका ना कोई आधार ना कोई अन्त....
ध्रुव चंडिका को क्यों नहीं पहचान पाता?...
सभी अपने अपने तर्क देते हैं. विपक्ष वाले कहते हैं ध्रव इतनी सी बात नहीं जान सकता.. बस आंखों को कवर करने से वो चेहरा नहीं पहचान पाता, आवाज नहीं पहचान पाता और उसके दिमाग पर सवालिया निशान लगाते हैं....पक्ष वाले कहते हैं चंडिका आवाज बदल लेती होगी, चेहरे में कुछ बदलाव कर लेती होगी, अपनी गंध छुपाने के लिये कोई यंत्र प्रयोग करती होगी इत्यादि...
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मैं कहता हूं ये सवाल है ही क्यों?
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भले ही श्वेता डरपोक और चंडिका बहादुर, भले ही चंडिका कोई यंत्र प्रयोग करती हो जो उसकी गंध, चेहरा, आवाज सब बदल दे... इन सब के बावजूद क्या अगर ध्रुव ठान ले कि उसे चंडिका का राज पता लगाना है तो क्या वो पता नहीं लगा सकता?.... जिस स्तर का ध्रुव का दिमाग स्थापित गया है उसके लिये ये बांये हाथ का काम है.... आखिर पहले भी उसने हर बार दिमाग का इस्तेमाल करते हुये ही जीत हासिल की है. कई बार परदे के पीछे छुपे विलेन्स का राज फाश किया है... फिर श्वेता/चंडिका के मामले में उसके दिमाग पर सवालिया निशान क्यों लगाने लगते हैं?
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असल बात ये है कि ध्रुव आज तक ये बात इसलिये नहीं जान पाया क्योंकि लेखक ने कभी चाहा नहीं कि वो यह बात जाने.. ध्रुव एक काल्पनिक किरदार है तो उसकी ताकत और कमजोरी सब लेखक की कलम पर निर्भर है. ध्रुव वही सोचेगा वही करेगा जो लेखक के अनुसार उसकी कहानी को आगे बङायेगा और ध्रुव और चंडिका की कहानियों का एक चटपटापन यह भी है कि ध्रुव चंडिका की असलियत नहीं जानता इसलिये उसके साथ मिलकर बिना किसी टेंशन के दुश्मनों की वाट लगा सकगा हैं अगर वो जान जाये कि ये उसकी बहन श्वेता है तो शायद फिर चंडिका का रोल इतना बहादुरी वाला नहीं हो पायेगा क्योंकी ध्रुव उसे ये सब नहीं करने देगा. यह अनभिग्यता ही दोनों के एक साथ काम करने में सहायक है. जिस दिन अनुपम सर ने सोचा कि एक कहनी लिखें जिसमें ध्रुव को ये राज पता चल जाये तो वह ऐसे १०० तरीके दिखा देंगे कि ये राज खुल जाये.
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ये सवाल दो ही टाईप के लोग पूछते होंगेंं...
१) जो मासूम हैं और सच में इस बात को सोचकर हलकान होते होंगे कि आखिर ये पहचान क्यों नहीं रहा.
२) जिनका फेवरिट किरदार कोई और है और वो ध्रुव को कम बताने के लिये उसके दिमाग पर उंगली उठाते होंगे.
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दोनों टाईप वालों से निवेदन है कि कृप्या दिमाग को ज्यादा लोड ना दें... लाईट लें.. कामिक्स पढें..कहानी के मजे लें!
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धन्यवाद
Sunday, 20 September 2020
शीर्षक - बांकेलाल और उल्टी चाल
शीर्षक - बांकेलाल और उल्टी चाल
एक सुबह बांकेलाल ने विशालगढ़ का राजा बनने के लिए बड़ी ही चालबाज युक्ति निकाली ।
बांकेलाल - ओ मेरा भोला है भंडारी करे नन्दी की सवारी शम्भूनाथ रे ओ शंकर नाथ रे ।
शिव जी ( दिल से पुकारे जाने पर तुरंत प्रकट होते है ) - क्या बात है बांके आज सुबह-सुबह मेरा नाम कैसे पुकार बैठे ?
बांकेलाल - वो प्रभु क्या है कि कल वन में ऋषि भागलँगोटी के लँगोट को बंदर चुरा ले गया और उस लँगोट को मैंने उस बन्दर से छीन कर ऋषिमुनि को लौटाया । लँगोट पहनते ही वो भागने लगे और भागते भागते उन्होंने बताया कि " सुबह सुबह ले शिव का नाम शिव आएंगे तेरे काम "
शिव जी - और तुमने मेरा नाम ले लिया ?
बांकेलाल - हिहिहि ।
बांकेलाल की हिहिहि से भगवान शिव जी के गले से लिपटे नाग जी क्रोधित हो फुफकार उठे ।
क्रोधित नाग ( फुफकारते हुए ) - भगवान शिव जी के सवाल का जवाब देने की जगह हिहिहि करने की हिम्मत कैसे की तूने ? तेरी तो अभी के अभी डसता हु तुझे सिकड़े पनौती ।
बाँकेलाल - क्ष क्षमा प्रभु क्षमा ।
शिव जी - तथास्तु ।
बांकेलाल ( भयभीत हो आश्चर्य में ) - नही नही प्रभु । मैं तो नाग जी से क्षमा मांग रहा था वर में विशालगढ़ का सिंहासन मांगना था मुझे ।
शिव जी - पर दर्शन देने पे तो सिर्फ एक वर देने की रीत है बांके जो हम दे चुके । अगर हम तुम्हे क्षमा ना करते तो अब तक मेरा कंठहार नाग तुम्हे डस चुका होता और तुम्हारी आत्मा बैकुंठधाम को प्रस्थान कर चुकी होती । चलो फिर आज के लिए इतना ही । अहम गच्छषि ।
अहम गच्छषि अर्थात अपने घर जाना । हिहिहि। यानी शिव जी हिमालय प्रस्थान कर गए ।
बांकेलाल - बेड़ागर्क । सोचा था वर स्वरूप विशालगढ़ का सिंहासन मांग लूंगा शिव जी से ताकि रोज रोज षड्यंत्र बनाने की जरूरत ही ना रहती । पर फिर से मेरी योजना का बेड़ागर्क हो गया ।
हिमालय पे
माता पार्वती - आज तो अच्छे फसे थे आप प्रभु ।
शिव जी - सत्य कहा आपने देवी । भक्त तो यह मेरा है पर बुद्धि इसमें महाभारत के शकुनि की है । धन्य है मेरा कंठहार जिसकी पैदा की गई स्तिथी के कारण मैं बांके को वर देने से बच गया वरना आज ये विशालगढ़ का राजा बन ही बैठा था ।
शिव जी हिमालय के ठंड में भी अपने सर पे आये पसीने की बूंद को पोछते है और माता पार्वती उन्हें देख मुस्कुरा रही होती है ।
धरा पे नीचे बांकेलाल फिर से नई षड्यन्त्रकारी योजना बनाने में लग चुका है जो इस बार की तरह उल्टी न पड़े ।
समाप्त ।
Tuesday, 1 September 2020
पत्रिकाएं आखिर बंद क्यों हो जाती हैं.....
आइये थोड़े ईमानदारी से जाने
कि पत्रिकाएं आखिर बंद क्यों हो जाती हैं
पहली बात तो यह समझ लीजिये कि कोई भी संस्थान इसलिए कोई पत्रिका बंद नहीं करता कि उसकी मर्जी है बंद करने की. नहीं,दरअसल पत्रिकाएं बिकती नहीं,बिकती नहीं तो विज्ञापन नहीं मिलते,विज्ञापन नहीं मिलते तो ये संस्थानों पर बोझ बन जाती हैं.ऐसे में इसका अंत बंद होना ही होता है.
1970 में भारत की साक्षरता दर करीब 35 फीसदी थी,1980 में करीब 44 फीसदी 1990 में करीब 52 फीसदी जबकी आज करीब 84 फीसदी है.लेकिन 1970 से लेकर 1990 तक देश में हिंदी की एक दर्जन से ज्यादा पत्रिकाएं थीं जो 1 लाख से 4 लाख तक बिकती थीं.धर्मयुग,साप्ताहिक हिन्दुस्तान,मनोहर कहानियां,माया,इंडिया टुडे,सरिता,कादम्बिनी,चंपक और चंदामामा तथा तमाम और.लेकिन आज जबकि देश की साक्षरता दर 84 फीसदी के करीब है तो हिंदी में कोई ऐसी पत्रिका नहीं है जो 50,000 कॉपी बिकती हो.
सवाल है पत्रिकाएं बिकती क्यों नहीं हैं? क्या लोगों की रीडिंग हैबिट कम हुई है,जवाब है बिलकुल नहीं.लोगों कि उलटे रीडिंग हैबिट बढ़ी है.सवाल है क्या वर्चुअल रीडिंग एक कारण है.जवाब है बस किसी हद तक क्योंकि अभी 2017-18 तक वर्चुअल कंटेंट मोबाइल आदि में इतना ज्यादा नहीं था.दरअसल इसका सबसे बड़ा कारण है कंटेंट. मैगजीनों में कहीं ओरिजनल कंटेंट है ही नहीं.हिंदी की एकमात्र पत्रिका अहा जिंदगी है जिसमें किसी हद तक ओरिजनल कंटेंट है.
बाक़ी जितनी पत्रिकाएं हैं उन सबमें उन्हीं घटित घटनाओं का टेबल में तैयार कंटेंट है जो पत्रिकाओं में छपने के पहले दर्जनों माध्यमों से दर्जनों बार हम तक पंहुच चुका होता है.अखबारों के जरिये,इंटरनेट के जरिये,टीवी चैनलों के जरिये या और भी कई तरीकों से.सवाल है पहले से पढ़े हुए घिसे पिटे कंटेंट को कोई कितनी बार पढ़े ? क्या हमारी तथाकथित करेंट पत्रिकाओं में ऐसी कोई सामग्री,ऐसी कोई धारणा,अवधारणा है,जो इन्टरनेट में उपलब्ध न हो ? धीरज धरिये हजारों लाखों की तादाद में चालू हुई वेबसाइटों का भी यही हश्र होना है जो आज पत्रिकाओं का हुआ है.
Saturday, 29 August 2020
अलविदा नंदन पत्रिका
90 के दौर में जिनका जन्म हुआ होगा वह नंदन नाम को अच्छे से जानते होंगे। आज यह बाल पत्रिका को बन्द करने की घोषणा की गई है। 56 साल का लंबा सफ़र तय करने के बाद आज अचानक से इसे बन्द किया जा रहा है।
दरअसल, कोई भी चीज़ अचानक या एकाएक बन्द नहीं होता है। कोई अप्रत्याशित घटना के लिये कई पृष्ठभूमि काम करती है। नंदन का बंद होना एक अप्रत्याशित घटना ही है। हमारी पीढ़ी का पहला साथी नंदन जब आज हम सबको छोड़ कर जा रहा है तो इसके पीछे के उन कारणों को जानना आवश्यक है।
हमारी पीढ़ी जो हर महीने नंदन के बिना चैन से रह नहीं पाती थी। आज उसमें से कइयों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि अगले महीने से यह पत्रिका बाज़ार में दिखना बन्द हो जाएगा। समय के साथ जो बदलाव हुए हमारे दौर के लोगों को पढ़ने की आदत दादा-दादी, नाना-नानी वाली पीढ़ियों से प्राप्त हुआ। यह तो भारतीय परंपरा रही है कि घर में प्रथम और तृतीय पीढ़ी में खूब छनती है। बस इसी प्यार में वह बुजुर्गों की पीढ़ी ने अपने पोता पोतियों के दिमाग में किताबो के प्रति लगाव भरे। मुझे नहीं लगता उस दौर का कोई भी बच्चा ऐसा होगा जो नंदन, नन्हे सम्राट, चंपक, राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, बाल भारती को नहीं पढ़ा होगा।
उसके बाद क्या हुआ, हमारे दादा दादी की पीढ़ी इस दुनिया से जाने लगे और हम तीसरी पीढ़ी के लोग बड़े होते चले गए और डिजिटल आँधी में उड़ गए। इस डिजिटल आंधी में संयुक्त परिवार की अवधारणा टूटी एकल परिवार का चलन बढ़ा। जो महानगर के दृश्य इन किताबों में सपनों की दुनिया जैसी लगती थी वो वैश्वीकरण के कारण हमारे बगल में आकर सट गया। हम खुद मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट में खुद को कैद कर लिए। इसके साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी इसमें कैद करते जा रहे हैं।
इसका मुख्य कारण है पहले के बच्चें पूरे घर के लोग मिलकर पालते थे। अब सिर्फ माँ-बाप को अकेले पालना पड़ता है। बच्चें परेशान ना करें इसके लिए उन्हें बचपन से हम मोबाइल हाथ में थमा देते हैं। लोग खुश होकर बोलते हैं मोबाइल युग का बच्चा है। नहीं, वह बच्चा बीमार है...
दादा दादी से कहानी सुनने की जगह वह यूट्यूब के माध्यम से कहानी सुन रहा है। वह खाने वक़्त भी मोबाइल देखना चाहता है।
मुझे याद है कहानी की किताब पढ़ने की आदत मुझे बाबा दादी से ही मिला था। किताबें हममें संस्कारों को सम्प्रेषित करती थी। पर आजकल यह खत्म सा हो गया है। इस डिजिटल युग के कारण बच्चों में सर्वागीण विकाश का अभाव है।
हमें दुबारा अपने बच्चों को किताबों के पास ले जाना होगा। एक पत्रिका जब बन्द होती है तो अचानक से बन्द नहीं होती। बन्द होने का माहौल कई दिनों से बनने लगता है। पर उस लिगेसी को बनाये रखने के लिए कुछ दिन खींचा जाता है। और, एक दिन वह बन्द हो जाता है। ये खींचने वाला दौर उस पत्रिका के टीम के लिए सबसे दुखदाई समयों में से एक होता है।
आज हम सबको सोचने की जरूरत आन पड़ी है।
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मेरे यहाँ जब नंदन आता था तो उसे सबसे पहले मैं पढ़ता था क्योंकि मैं 40 से 50 मिनट में पढ़ जाता था। उसके बाद मम्मी और दादी पढ़ती थी। दादी अपने मोटे चश्मे में दो से तीन दिन में उसे खत्म करती थी। और, उसके बाद उस अंक के किसी कहानी पर हम दोनों की बहुत देर चर्चा होती थी।
हमें सोचना होगा चिंतन करना होगा हम आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं और क्या देकर जाएंगे।
अगर यह चिंतन पहले हुआ रहता तो नंदन को आज यूँ बन्द नहीं होना पड़ता
Abhilash Datta.
Friday, 28 August 2020
गरीबी मिटाने का फॉर्मूला:-पर्दीप बरनवाल की कलम से हास्य लेख (आधारित राज कॉमिक्स )
गरीबी मिटाने का फॉर्मूला:
जैसा कि आप सब जानते हैं, तिरंगा अभी निहायती आखिरी दर्ज़े की गरीबी से गुज़र रहा है। उस मच्छरदानी वाले ने भी उसे लूट लिया। वो तो डोगा की दया थी कि उसे बिरयानी खाने को मिल गई। वरना पता नहीं का क्या होता। बहूहूहु।
तिरंगा अपनी हालत पर रो रहा है।
तिरंगा: लानत है मेरे ऊपर। दुनिया का सबसे बड़ा डिटेक्टिव बन के घंटा कुछ नहीं हो रहा। खाने को पैसे नहीं। लोग समझते हैं मैं सख्त लौंडा हूँ इसलिए कोई गर्लफ्रैंड नहीं है। परंतु असलियत तो ये है कि भाई डेट पर ले जाने को भी पैसे नहीं हैं। पर ये बात दुनिया वालों को नहीं बता सकता। एक तो सुपरहीरो का टैग लग गया। लोग समझते ही नहीं हैं कि हमारे ऊपर भी गरीबी आ सकती है। जहाँ जाता हूँ और भी दाम बढ़ा कर बोलते हैं। बहूहूहू। क्या करूँ मैं, क्या करूँ?
काफी दिमाग दौड़ाने के बाद।
तिरंगा: अरे हाँ। ये करना सही रहेगा। हीहीहीही। अब तुमलोगों का क्या होगा कालिया? हीहीही हाहाहाहा हूहूहूहू।
क्या सोचा था तिरंगा ने ऐसा? उसकी गरीबी कैसे मिटेगी? क्या वह दोबारा बिरयानी खा पायेगा? वो चिकन तंदूरी खायेगा या दाल चावल भी नसीब नहीं होगा?
Scene 1: रक्षाबंधन का दिन, राजनगर
श्वेता सुबह सुबह ताज़ी मिठाई ख़रीदने निकली। राजनगर की प्रसिद्ध बंगाली मिठाई की दुकान, दास स्वीट्स में।
श्वेता: भैया वो कलाकंद देना 10 पीस और 20 काजू कतली और मेरे फेवरेट रसगुल्ले 20 पीस। हीहीही।
पीछे से आवाज़ आती है,”अरे श्वेता! इतनी मिठाई ध्रुव के लिए?”
श्वेता: अरे नहीं रे उसको तो 1 कलाकंद देकर साइड कर देना है बाकी तो मैं खाऊँगी। हीहीहीही। (पीछे मुड़ते हुए) अरे तिरंगा तुम यहाँ? तुम यहाँ कैसे? अच्छा है रक्षाबंधन के दिन आये अब तुमको भी राखी बांध दूंगी। मोहल्ले के चोट्टे लोगों के लिए कुछ एक्स्ट्रा राखियाँ खरीद रखी थी। तुमको भी बांध दूंगी। हीहीहीही।
तिरंगा: (मन में: गुर्रर। सोचा था कभी सेटिंग करूँगा ये तो मुझे भाई बनाने पर तूल गयी। मैंने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।) अरे राखी पहनाओ तुम उस नीली पीली ड्रेस वाले को। गुर्रर। मैं यहाँ किसी और काम से आया हूँ।
श्वेता: अच्छा तो जाओ अपना काम करो मैं चलती हूँ। बाय।
तिरंगा: गुर्रर। ये तो बिल्कुल भाव नहीं दे रही। अभी बताता हूँ इस नकचढ़ी को। (चिल्लाते हुए) अरे सुनो तुमसे ही काम था।
श्वेता: अरे तो घर आ जाना बाद में। अभी बिजी हूँ। बहुत काम है मुझे। चलो फूटो रंग बिरंगे।
तिरंगा: मुझे रंग बिरंगा बोला। मैं छोडूंगा नहीं।
तिरंगा दौड़ते हुए श्वेता के पास पहुँच गया।
श्वेता: अच्छा तो अब तुम लड़कियाँ छेड़ने लगे हो। सुपरहीरो गिरी नहीं चली तो इस काम पर उतर आए। रुको भैया को कॉल लगाती हूँ।
तिरंगा: हाँ हाँ। लगाओ ध्रुव को फ़ोन मैं भी थोड़ा बात करना चाहता हूँ। चंडिका के बारे में।
श्वेता तुरंत फ़ोन काट देती है।
श्वेता: हैं! क्या बोला तुमने?
तिरंगा: बेटा सबसे बड़ा डिटेक्टिव ऐसे ही नहीं हूँ मैं। हीहीहीही। मुझे तो उस सर्कस के बंदर नक्षत्र के बारे में भी पता है जिससे तुम आजकल कुछ ज्यादा ही मिलती जुलती हो वो भी छुप छुपकर।
श्वेता मन में: हे भगवान ये कहाँ फँस गई मैं? इस चमगादड़ को तो सब पता है। अब क्या करूँ? बहुत तीसमारखाँ समझती थी खुद को। अब भुगत।
श्वेता: खीखीखीखी। अरे तिरंगा भैया…..
तिरंगा: भैया नहीं बोलने का।
श्वेता: ऊप्स। सॉरी। आई मीन तिरंगा। हीहीहीही। तुम तो लाइक भैया के इतने अच्छे दोस्त हो। क्यों उसकी छोटी बहन को परेशान कर रहे हो? हम भी तो कितने अच्छे दोस्त हैं। हीहीहीही।
तिरंगा: अरे चुप न तो तू मेरी दोस्त है ना तेरा वो भाई। उसने ही तो सारी फेम छीन ली मुझसे। बहूहूहू। क्या दर्द बताऊं तेरे भाई ने कितना दर्द दिया है। कोहराम में उसने कोहराम मचाया। जलजला में तो मुझे पूछा भी नहीं। एक नेगेटिव्स आई मेरी थोड़ी ठीक ठाक तो अचानक से बाल चरित ही शुरू हो गया। अरे भाई हम भी तो कभी पैदा लिए रहे। हमरे पर काहे नहीं बनता कोई चरित। हमरा तो चरित्र ही दागदार बना दिया। बहूहूहू। 😭😭😭😭😭😭
श्वेता: अरे अरे तुम तो सेंटिया गए। चुप हो जाओ लो 1 रसगुल्ला तुम खा लो।
तिरंगा तो जन्मों का भूखा था ही। तुरंत उसने वो रसगुल्ले वाला पैकेट ही छीन लिया और श्वेता के देखते ही देखते सारे रसगुल्ले ठूँस गया और भयानक डकार भी मारी।
तिरंगा: हाँ। अब थोड़ा ठीक लग रहा है। (दूसरी डकार)
श्वेता: अबे रंग बिरंगे तूने तो मेरे सारे रसगुल्ले खा लिए। गुर्रर। मैं तुझे छोडूंगी नहीं।
श्वेता तिरंगा को पीटने के लिए हाथ उठाती ही है कि तिरंगा बोल उठता है।
तिरंगा: रुक जा बेटा। भूल क्यों रही तेरे सारे राज़ मुझे पता हैं। हीहीहीही।
श्वेता: खीखीखीखी। अरे मैं तो बस यूँही तुमको और मिठाई देने के लिए हाथ निकाल रही थी। लो और मिठाई खा लो। बहूहूहू। सारी काजू कतली ठूँस लो। बहूहूहू।😭😭
तिरंगा: (श्वेता के हाथ से सारी मिठाई छीनते हुए) हाँ वो तो मैं खाऊंगा ही। अब सुनो काम की बात। आज रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने पर तुझे उस पीली चड्डी वाले से बहुत पैसे मिलने वाले हैं। शाम में आकर बाबू भैया की चाय की दुकान के पास आके मुझे दे जाइयो। 100 रुपये तू रख लेना आखिर रक्षाबन्धन है। हीहीहीही। और सुन बाबू भैया की चाय भी तेरे पैसे से पियूँगा। हीहीहीही। वरना तो तुझे पता है अगर मैंने ध्रुव को चंडिका वाली बात बता दी तो तेरी बहुत पिटाई होगी। और अगर नक्षत्र वाली बात बता दी तो तेरा घर से निकलना बंद और वो बंदर पिटेगा अलग से। हीहीहीही।
श्वेता: (अंदर ही अंदर आँसू बहाते हुए। ये किस घड़ी में मिठाई लेने निकली थी बहूहूहू। पैसे भी गए और मिठाई भी। ऊपर से ये रंग बिरंगा सारे राज़ जान गया है।) बहूहूहू। ठीक है तिरंगा शाम को तुम आके पैसे ले जाना। बट प्लीज 500 रुपये तो दे दो यार। मेरे भी बहुत खर्चे हैं। और वो नक्षत्र भी पैसे नहीं खर्च करता। बोलता है सर्कस का धंधा मंदा चल रहा है। बहूहूहू।
तिरंगा: जा सिमरन जा जी ले अपनी ज़िंदगी। दिए तुझे 500 रुपये। पर मेरे से होशियारी नहीं। बाकी सारे पैसे मेरे। हीहीहीही। और बाई दी वे, रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं। हीहीहीही।
श्वेता: छोडूंगी नहीं तुम्हें।
तिरंगा वहाँ से निकल गया। तिरंगा उछलते कूदते जा रहा था।
तिरंगा: आज मैं छक कर बिरयानी खाऊंगा। हीहीहीही। ओह नहीं आज तो सावन का लास्ट डे है। माफ करना भोले शंकर। हीहीहीही। बिरयानी कल से। पर पनीर तो आज खा ही सकता हूँ। हीहीहीही।
तो देखा दोस्तों तिरंगा अपनी गरीबी मिटाने के लिए पहली चाल चल चुका है। और उसमें वो कामयाब भी हो गया है। अब आगे क्या चालें चलेगा तिरंगा। ये कैसा रूप धारण किया है उसने? कौन होगा उसका अगला शिकार? क्या उसकी गरीबी मिटेगी? क्या ब्रह्माण्ड रक्षक कुछ कर पाएंगे? जानने के लिए इंतेज़ार कीजिये अगले एपिसोड का। हीहीहीही।
Thursday, 30 July 2020
भविष्य में --भाग - 3-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-15
डोगा की चुगलखोरी के कारण तिरंगा की नागराज द्वारा जबरदस्त ठुकाई और फिर से डोगु की चुगलई के कारण शक्ति के हाथों हुई तिरंगा की सर्वोत्तम ठुकाई के कारण तिरंगा कई जगह से सूजा हुआ नजर आ रहा था ।
अपने दर्द को बर्दास्त कर वो बाथरूम में गया और पानी का नल तेज कर शावर ऑन कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा । बेचारे ने देखा नही की बाथरूम में भेड़िया कमोड पे बैठा हुआ है ।
भेड़िया – क्या हुआ तिरंगा भाई ?
तिरंगा – मत पूछों .....
भेड़िया – ठीक है नहीं पूछता ।
तिरंगा – अबे पूरी बात तो सुन ले । मै कह रहा था की मत पूछों ... दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है ....
भेड़िया – जिंदगी भर का दर्द तुम्हे इनाम दिया है ।
तिरंगा – अबे मुझे बोलने दे न ।
भेड़िया - कैसे बोलने दू । मैंने सब पहले ही सुन लिया था । बाहर डोगा की होशियारी तुझ पे भारी पड़ गयी, है ना !
तिरंगा – होशियारी करके शक्ति को पटा लिया है उसने । अब अगर बदला लेने के लिए मैंने कुछ किया तो शक्ति मार-मार के मेरी कढ़ाई सुलगा देगी ।
भेड़िया – पर बदला तो लेना पड़ेगा । तुम्हारा दर्द मुझसे देखा नही जा रहा । जैसा मै कहता हू वैसा करो ।
तभी आवाज आती है पुईई ....
तिरंगा (घिनाते हुए) – नहीं मै ये नही कर सकता ।
भेड़िया – अरे कमोड पे बैठा हू पू-पुई तो होती रहेगी । मै कुछ और करने को कह रहा था ।
तिरंगा – ओ, फिर ठीक है । बताओ क्या करू ?
भेड़िया – भाई डोगा ने शक्ति को पटा लिया है ये बात मोनिका को बता दो । बाकी सब वो सम्भाल लेंगी ।
तिरंगा – अगर तू कमोड पे नही होता तो अभी तुझे अपने कंधे पे उठा के डांस करने लगता मै ।
भेड़िया – ये तमन्ना किसी और दिन पूरी कर लेना वरना तू थोरा गिला और पिला हो जायेगा हीहीही ।
इधर डोगा शक्ति को अपने हाथो से समोसे खिला रहा था और नागराज ने चटनी वाली प्लेट पकड़ रखी थी ।
नागराज – ये समोसा खाने में कैसा लगता है ?
डोगा – विशर्पी तुझे समोसा नही खिलाती ?
नागराज – नहीं हम दोनों तो बस दूध पीते है ।
शक्ति (हसते हुए) – ये बताओ शादी के बात तुम हनीमून मनाने के लिए कहा गये थे ?
नागराज – वही नाग्दविप में एक बिल था । दोनों ने सर्प रूप धारण किया और बिल में चले गये ।
डोगा (बहुत जोर से हसते हुए) – अबे बिल में जाके मशरूम उगा रहे थे क्या ? कैसे किलो मशरूम दिए ? यहा ले आते मै खरीद लेता तुझसे और पका के विशर्पी को खिलाता ।
नागराज – विशर्पी को मशरूम बाद में खिलाना पहले पीछे देख !
डोगा पीछे देखता है और शक्ति के मुह के पास ले जाता समोसा खुद खा जाता है ।
डोगा – मेरी बीवी से कोई मुझे बचाओ ।
मोनिका (शक्ति को समोसा खिलाता देख गुस्से में लोमड़ी बन जाती है) – मै समोसा लाने को कहू तो मुझे आलू ला के दे देते हो की खुद से पका लो और यहा इस नील की खेत में समोसा ठूस रहे हो ।
शक्ति – जबान सम्भाल के मोनिका ।
मोनिका (शक्ति को बाल से घसिटते हुए तीन-चार चपेट मार) – चुप कर ! मेरे और मेरे पति के बीच आई तो दोबारा किसी के बीच में आने के लायक नही छोडूंगी तुझे ।
डोगा – अरे जानू .... !
मोनिका (आग-बबूला होते हुए) – जानू ! क्या बात है । शक्ति के लिए बहुत प्यार परवान चढ़ रहा तुम्हारा ।
डोगा – अरे नही मोनिये मै मै तो तुम्हे जानू कह रहा था ।
तिरंगा – थोरी देर पहले तो शक्ति से कह रहे थे की .... जानू समोसा खा लो ।
डोगा – मे ... मैंने ऐसा कुछ नही कहा था मोनिए ।
पर मोनिए (मोनिका) कहा कुछ सुनने वाली थी । अब तो बस तांडव करना बाकि था । डोगा की धुनाई ऐसे शुरु हुई जैसे पूरे ब्रम्हांड में भूकंप आ गया हो ।
मोनिका की मार से डोगा की सारी मर्दानगी बहार निकलने लगी और जिन्दगी में पहली बार वो चिल्लाया ।
डोगा – अरे माफ कर दे पत्नी कही की । कसम खाता हू आज के बाद समोसा क्या चटनी को भी हाथ नही लगाऊंगा । ना खुद खाऊंगा न किसी को खिलाऊंगा ।
मोनिका – तू कुत्ते की दुम है । जानती हू सुधरेगा नही । ब्रम्हांड को बचा के घर पे आ । रही सही कसर वहा पूरी करुँगी । गुरर्र ।
और डोगा का मुरब्बा बना के मोनिका वहा से चली गयी ।
शक्ति – काली माँ का एक रूप तो मै हू पर मोनिका तो आज साक्षात् काली माँ लग रही थी । डोगु मुझसे दूर रहियो आज के बाद नही तो तेरे साथ साथ मेरी भी धुनाई कर जाएगी ये ।
डोगा – कोई बाम लाओ रे ! बहुत दुःख रहा । कैसे बताऊ की कहा कहा दुःख रहा ।
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आगे की कहानी फिर कभी ! हीहीही .....
भविष्य में -- भाग - 2-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-14
शक्ति द्वारा नागराज की सम्पूर्ण ठुकाई के बाद ----
तिरंगा – रहने भी दो राज .... प्रकाश की गति से जो तुहार धुनाई हुई है उससे बचना तेरे लिए नामुमकिन ही नही मुश्किल था ---- खिखिखी ।
डोगा ( पेट पकड़ के ) – हिहिहिः । ही हाहाहा । हीईई ....
शक्ति (डोगा के कान मडोड़ते हुए) – मुझे डाउट है की तू मुझ पे हस रहा है ....!
डोगा – अले नही-नही शक्ति मै तुम्पे नही तिरंगा की चालबाजी पे हस रहा हू ।
नागराज – कैसी चालबाजी ?
डोगा – जब तुमने कहा की “ चंदा की सफेदी को छिपाने के लिए नील में डूबकी लगाने वाली औरत ..... (टुच्ची औरत) तो हम सब ने अपनी हँसी रोक ली वरना शक्ति उलटे हाथ और सीधे पैर से हम सब की धुनाई कर देती पर तिरंगा दिमाग लगा के ठहाके मार खिखियाने लगा । खिखियाते हुए बस तुम्हारी बेबसी पे एक डायलॉग झूठ-मूठ का बोल दिया ताकि शक्ति तिरंगा की चालबाजी ना पकड़ पाए ।
तिरंगा (घबराहट में) – अरे नही ... ए ... ऐसा क ... कुछ भी नही ....
शक्ति (क्रोध में तीसरा नेत्र ओपन किये) – आज इस कटोरा-कट बाल वाले का भुनगा बना के छोडूंगी ।
नागराज (शक्ति को तिरंगा की पिटाई करने से रोकते हुए) – अरे बस–बस शक्ति बस । अपने नाजुक हाथों को कितना कष्ट दोगी जरा हमे भी मौका दो । बहुत देर से हाथ खुजा रहा था मेरा ।
शक्ति को ना पिट पाने की खुजली नागराज तिरंगा की धुनाई कर के मिटाने लगता है ।
तिरंगा (दर्द में जोर-जोर से चिल्लाते हुए) – आई अबे बस कर इस कटोरे-कट की जान लेनी है क्या ?
तिरंगा की दर्द भारी चींखे सुन के शक्ति का क्रोध शांत हो जाता है और नागराज को तिरंगा की धुनाई करने से रोक देती है ।
तिरंगा (बिलखते हुए) – इत्ती धुनाई .... नागराज के बच्चे अगर तू कोई विलन होता तो सच में अभी तेरी इतनी ठुकाई करता की तुम्हे तुम्हारा एकलौता वस्त्र बदलने की जरूरत आ पड़ती ।
तिरंगा की बात सुन और दर्द में उसे रोता देख शक्ति और नागराज हसने लगते है ।
डोगा (बहुत जोर की) – खिखिखी ।
शक्ति (फिर से डोगा के कान पकड़ते हुए) – मुझे इस बार भी डाउट हो रहा की तू मुझ पे हस रहा ।
डोगा – हंसू नही तो क्या करू तुम दोनों हो ही बेवकूफ ।
नागराज (गुस्से) – देख डोगु ... शक्ति भले बेवकूफ होगी पर मै नही ।
शक्ति (नागराज के फन वाले बाल नोचते हुए) – क्या कहा मै बेवकूफ ....
नागराज – अरे नही-नही शक्ति वो बस ऐसे ही मुह से निकल गया .... तुम नही मे .. मै बेवकूफ । ये बात तो जग जाहिर है । तु... तुम गुस्सा न करो ।
शक्ति (गुस्सा ठंडा होते ही) – ठीक है ।
नागराज – बोल बे डोगू । कैसे हुए हम दोनों बेवकूफ ?
शक्ति (फिर से गुस्सियाते हुए) – क्या कहा .... ?
नागराज – अले ऐसे बात-बात पे तुम आँख में अंगारे क्यों भर लेती हो .... मै बेवकूफ तुम नही । बोल डोगू ... कब तक चुप रहेगा मेरी फिर से धुनाई होने के बाद बोलेगा क्या ?
डोगा – अरे इस तिरंगा ने फिर से उल्लू बना दिया शक्ति को और तुझे पहली बार उल्लू बनाया इसने ।
शक्ति और नागराज – वो कैसे ?
डोगा – कोई विलन भी हमसे कुटाने के इतनी जोर से नही चिल्लाता जितनी जोर-जोर से तिरंगा चिल्ला रहा था । बहुत जोर का दिमाग लगाया इसने । पिटाई के वक्त जोर-जोर से गला-फाड़ चिल्लाओ जिससे उसकी पिटाई करने वाले का दिल पसीज जाये और पिटाई न करे ।
शक्ति – मतलब ये ढेढ़-शाना नाटक कर रहा था .... इसकी तो ....
और इसी के साथ शक्ति के उलटे हाथ और सीधे पैर तिरंगा पर बरसने लगे । और इस बार दर्द की लहर से तिरंगा सच्ची में गलाफाड़ चींख रहा था पर शक्ति के प्रकाश की गति से चलते हाथ-पैर नही रुके !
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आगे की कहानी किसी और दिन ---
भविष्य में --पार्ट -1-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-13
रक्षक मंडली शादीशुदा जिन्दगी में मग्न है पर साथ में अपने शहर के साथ-साथ ब्रम्हांड की भी रक्षा करने में कोई कमी नही करते थे | एक दिन ब्रम्हांड की रक्षा के लिए सभी रक्षकों की जरूरत आन पड़ी ।
सब उपस्थित हो गये पर ध्रुव नही ---
नागराज – ये धरू कहाँ है उसके बगैर ब्रम्हांड को बचाना नामुमकिन ही नही मुश्किल है ।
शक्ति – नागमणि कौन से स्कूल ले जाता था तुझे ..... कहावत भी ठीक से नही आती ।
नागराज – चुप कर चार बूंदों वाली ... भाषण मत झाड़ ।
शक्ति - चार बूंदों वाली .... क्या मतलब चार बूंदों वाली ?
तिरंगा – तुमने वो ऐड नही देखा ... उजाला -- चार बूंदों वाला जिससे हर कपड़ा नीला हो जाता है ।
शक्ति ( क्रोध में ) – नागराज के बच्चे आज तुझे टुच्चा बना के छोडूंगी ... गुर्र्र्रर ।
और इसी के साथ नागराज पर शक्ति के लहकते चांटे और लात चलने लगे हर वार से के साथ नागराज की खाल उखड़ती जा रही थी और बेचारा जलन से चिल्लाने के लिए मुह तो फाड़ रहा था पर चिल्ला नही रहा था वरना बेचारे की घनी बेइज्जती हो जाती रक्षक मंडली के बीच ।
फाइनली शक्ति की पिटाई बंद हुई और नागराज जगह-जगह से हल्का फुल्का सूजा हुआ दिखाई देने लगा ।
शक्ति – अब बोल टुच्चे बना दिया ना मैंने तुझे टुच्चा ।
नागराज – नारी पे हाथ नही उठाता वरना आज तुझे टुच्ची बना देता .... चंदा की सफेदी को छिपाने के लिए नील में दुबकी लगाने वाली औरत ।
तिरंगा – रहने भी दो राज .... प्रकाश की गति से जो तुहार धुनाई हुई है उससे बचना तेरे लिए नामुमकिन ही नही मुश्किल था ---- खिखिखी ।
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आगे की कहानी किसी और दिन -----
अमित कुमार की कलम से हास्य लेख (आधारित राज कॉमिक्स)
नागराज सुबह ही भागता हुआ ध्रुव के घर पहुँचा और ध्रुव से कहता है -जल्दी चलो महामानव ने महानगर पर हमला कर दिया है अब तुम ही कुछ कर सकते हो
ध्रुव-ठीक है चलो।
(मन ही मन सोचता है अभी तो काढा भी नहीं पिया है और काढा भी खत्म हो गया,लगता है आज इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी)
घर से थोडी़ दूर चलके हकीमजी का घर के पास ध्रुव जमीन पर गिर पडा।
नागराज-क्या हुआ ध्रुव
ध्रुव-पता नहीं क्यों पेट में बहुत दर्द हो रहा है पर तुम मेरी चिंता मत करो महानगर वालों को हमारी जरूरत है जल्दी चलो
नागराज-पर तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही, एेसा करते है ये पास ही हकीम जी रहते है,इनको दिखा लेते है।
हकीम जी के घर
नागराज-देखिये हकीम जी ध्रुव को क्या हुआ
हकीम जी ध्रुव को देखते ही सब समझ जाते है कि शायद इसका काढा खत्म हो गया है कल ये ले जाना भूल गया था
हकीमजी-इसे बराबर के कमरे में लिटा दो,देखता हूँ।
कमरे के अंदर
ध्रुव फुसफुसाते हुये-हकीमजी काढा खत्म हो गया
हकीमजी धीरे से-मै भी समझ गया था काढा तैयार है जल्दी से पी लो
ध्रुव ने जल्दी से काढा पिया और हकीमजी के पैर छुये-आज आपने मेरी इज्जत बचा ली
हकीमजी-बस कर पगले अब रूलायेगा क्या?
दोनो कमरे से बाहर आते है
नागराज-इतनी जल्दी ठीक हो गये ध्रुव,क्या जादू कर दिया हकीमजी ने?
हकीमजी मक्कारी वाली हँसी हँसते हुये-हीहीही,कुछ नहीं पेट में गैस इकट्ठी हो गयी थी,दवा दे दी है अब कुछ ही देर में हवा घूम जाएगी पर थोड़ा दूर रहना ध्रुव से।
ध्रुव भी खीखीखी करके हँसने लगता है
नागराज गुस्से में- ओ काढा़ पुरूष ज्यादा खीखीखी मत कर सर्प वाले कान है मेरे,सब फुसफुसाहट सुन ली मैनें,अब जल्दी चल महानगर भी पहुँचना है।
ये कह कर नागराज ने ध्रुव को खींचा, ध्रुव का बैलेंस बिगड़ा और ध्रुव गिर पड़ा,हड़बड़ा कर ध्रुव बेड पर से गिर पड़ा वो पसीना पसीना हो चुका था उसे अहसास हुआ वो सपना देख रहा था,उसने भगवान का शुक्रिया किया चलो शुक्र है कि चलो किसी को इस राज के बारे में किसी को पता नहीं चला।
सजन चौहान की कलम से
बह व्यक्ति:- क्या राज कॉमिक्स अभी भी आरही है ?
मैं:- यह तो कई सालों से आरही है।
बह व्यक्ति:- मैं समझा की राज कॉमिक्स कई साल पहले ही बंद हो गई।
मैं:- जी बह मनोज और तुलसी की बंद हुई थी। और अब तुलसी भी फिर से रीप्रिंट हो रही है।
बह व्यक्ति:- क्या लोग इसे अभी भी पड़ते है।
मैं:- कॉमिक्स पड़ने वालो की कमी थोड़ी है । मैंने उन्हें हेल्लो बुक माइन व राज कॉमिक्स ग्रुप के बारे मैं बताया तो बह व्यक्ति तुरंत ग्रुप में ऐड हो गया और मुझसे बोला की अब मैं भी कुछ कॉमिक्स लेकर जाऊंगा और मेरे साथ कॉमिक्स चुनने लगा और 5 कॉमिक्स खरीद कर ले गया पर मै कॉमिक्स चुनता रहा तभी बहा पर दूसरा व्यक्ति आता है और उस व्यक्ति की भी नजर कॉमिक्स पर पड़ती है और बो मुझसे बोलता है ये तो हमारे ज़माने की कॉमिक्स है लोग अभी भी बच्चो की तरह इन कॉमिक्स को पढ़ते है मैंने कहा इन्हें सिर्फ बच्चे ही नहीं सभी उम्र के लोग पड़ते है तो बह व्यक्ति मुझसे बहस करते हुए मुझसे कहता है कि ऐसा हो ही नही सकता, तब मैने फिर फेसबुक खोल लिया तब बह व्यक्ति चोंक गया और बोला की कैसे लोग है अभी भी कॉमिक्स पड़ते है मैंने उसपर ध्यान ना देते हुए कॉमिक्स चुनने लग गया तब बह जाने लगा , थोड़ी दूर जाने के बाद बह व्यक्ति बापस आकर बोलता है कि मैं अपने बच्चो के लिए ले लेता हूँ कॉमिक्स बो भी तो जानेगे हमारे ज़माने की कॉमिक्स के बारे में तब बह 2 कॉमिक्स खरीद कर ले जाता है तब मुझे लगता है कि कॉमिक्स पड़ने बालो की अभी भी कमी नहीं है बस उन्हें पता नहीं है कि कॉमिक्स अभी भी मिलती है उन्हें सिर्फ इतना ही पता की diamond comics ही मिलती है अगर ज्यादातर लोगो को पता चल जाये की राज कॉमिक्स अभी भी मिलती है तो तो भारत में भी कॉमिक्स ज्यादा मात्रा में बिकेगी जिससे भारत की कॉमिक्स इंडस्ट्री भी बहुत तरक्की करेगी बस जरूरत है लोगो को कॉमिक्स के प्रति जागरूक करने की
और मैं भी 16 कॉमिक्स खरीदने के बाद घर बापस लोट आया ।
और रही बात की लोग कहते है कि नितिन मिश्रा जी की कहानी लंबी होती है तो उन्हें कहानी लंबी इसलिए लगती है क्योंकि कॉमिक्स देरी से आती है अब सर्वनायक ही मान लीजिए ज्यादतर लोग कहते है कि सर्वनायक की कहानी लंबी है तो मैं उन्हें बता दू की हो सकता है कि नितिन मिश्रा जी ने सर्वनायक की कहानी कब की समाप्त कर ली हो और कॉमिक्स देरी के आने की बजह से हमे लगता है कि कहानी लंबी बना दी है । अब मुझे पता है कि आप भी कुछ राय जरूर देना चाहोगे कमेंट में तो मेरे पोस्ट के कमेंट में आपका स्वागत है।
धन्यवाद
# राज कॉमिक्स है मेरा जूनून
# जूनून जिन्दा है
Tuesday, 28 July 2020
दीपक वर्मा की कलम से
आज बहुत दिन के बाद कुछ लिख रहा हूँ।
लगभग 3-4 साल का रहा होऊंगा जब मैंने कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया । मैं उन कुछ खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्होंने कॉमिक्स से ही पढ़ना सीखा ।
पापा एक कॉमिक्स लेकर आये थे "चाचा चौधरी और राका" । उसके चित्र देखकर मैं बड़ा आकर्षित हुआ था। फिर उसी से जैसे छोटे बच्चों को एक एक अक्षर मिलवा कर एक शब्द पढ़ना सिखाया जाता है मैंने वैसे कॉमिक्स पढ़नी सीखी और फिर चाव चाव में कई सारी पढ़ डालीं । इससे हुआ ये कि मुझे अपनी स्कूल की हिंदी की किताबों में से (उस समय बाल भारती चला करती थी) बिना एक-एक अक्षर मिलाये पूरा पूरा शब्द ही पढ़ने की "अद्भुत मायावी" शक्ति प्राप्त हुई ।
फिर तो पढ़ने का ऐसा शौक लगा कि क्या बताऊँ।
ऐसी उत्कंठा होती कि बस अगली कक्षा में आते ही नए पाठ्यक्रम की बाल भारती पढ़ने को मिल जाये । जैसे ही हत्थे चढ़ती पूरी पढ़ डालता ।
जानता हूँ कि पोस्ट थोड़ी लम्बी हो रही है पर आप धैर्य बनाए रखें । 😁
थोड़ा बड़ा हुआ तो पता लगा कि कॉमिक्स किराए पर भी मिलती हैं । बस मम्मी से जिद करके कॉमिक्स किराए पर ले आता और पढ़ता । एक बार यही पापा को पता लगा तो उन्होंने खूब डांटा पर ये सिलसिला रुका नहीं ।
धीरे धीरे डायमंड कॉमिक्स से राज कॉमिक्स पर आया ।
उस समय एक विज्ञापन देखा था नागराज की किसी कॉमिक्स का । बस उसे पढ़ने की इच्छा बलवती हो उठी ।
फिर क्या था मम्मी को मक्खन लगाने का सिलसिला शुरू हुआ, मक्खन काम करने लगा था लेकिन वह मक्खन कब चूने में परिवर्तित हो गया, पता भी ना चला।
शीघ्र ही चाचा जी के कंप्यूटर से भी तेज दिमाग की तरह यह चूना लगाने की प्रक्रिया तेज़ होती गयी और अंततः सफलता प्राप्त हुई ।
पहली कॉमिक्स पढ़ी "नागराज" ।
बहुत पसंद आई !
फिर तो बस अधिकतर नागराज की ही कॉमिक्सें पढ़ने लग गया ।
फिर किसी दिन दुकान पर सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्सें दिखीं ।
एक ले आया ।
कॉमिक्स थी "रोमन हत्यारा" ।
फिर मैंने नागराज और ध्रुव, दोनों ही चरित्रों को पढ़ना शुरू कर दिया।
आशा है कि आप बोर हो रहे होंगे और मुँह फाड़ के उबासी ले रहे होंगे । 😄
एक वाक़या जरूर बताना चाहूंगा ।
एक बार ध्रुव की एक कॉमिक्स का विज्ञापन देखा ।
कॉमिक्स थी "आत्मा के चोर" ।
मैंने सोचा कि ध्रुव की आत्मा ही अगर अलग हो गयी तो वो तो मर जायेगा ।
क्या हुआ होगा उसे? आदि आदि!
बस फिर तो उस कॉमिक्स को पागलों की तरह ढूंढना शुरू किया । कॉमिक्स की दुकान वाले भैया भी उकता गए थे कि ये तो रोज़ ही पूछने आ जाता है (जैसे आप लोग मेरी पोस्ट पढ़ पढ़ के उकता गए हो... तो नोंच लो बाल ! 😆 )
इतनी ज्यादा बार दुकान पर पता करने गया कि कई बार तो कॉमिक्स की दुकान के बगल वाली दुकान से दूध ब्रेड भी लेने जाता तो कॉमिक्स वाले भैया दूर से ही कहते "नहीं आयी अभी" !
खैर! किस्से तो बहुत हैं जैसे किताबों के बीच कॉमिक्स छुपाना, पिटने से बचने के लिए दोस्त के बैग में रखना, इत्यादि । फिर किसी दिन बताऊंगा, वरना आप लोग गालियां दोगे (दे दो, क्या उखाड़ लोगे! 😆 )
तो इसी के साथ इस पोस्ट का समापन करता हूँ।
भई! अपने अपने काम-धंधे देखो, मेरा तो ये रोज़ का नाटक है ! 😂
Friday, 10 July 2020
अभिषेक मिश्रा की कलम से
मेरे बहुत से मित्र जो खुद कॉमिक्स प्रेमी है वो आये दिन पुछा करते है मेरे कॉमिक्स प्रेम के बारे में.मेरे कलेक्शन के बारे में.कई बार मुझे इग्नोर करना पड़ता है तो कई बार छोटे छोटे पार्ट में कहानी सुनकर शांत कर देता हु.आज यहाँ सबके कॉमिक्स से जुड़े निजी अनुभव देखे तो सोचा अपना पिटारा भी आज ही खोल लिया जाये.बहती गंगा में हाथ धोना ज्यादा सही रहता है.😁😁
बात तब की है ज़ब मैं "4 साल का परमाणु" बन चूका था और "बुद्धिपलट" की तरह बचपन से ही "शैतान" था.पूरी तरह तो नहीं लेकिन थोड़ा थोड़ा "काला अक्षर भैंस बराबर" पढ़ना और चित्र देख कर समझना आता था. मैं अपने बड़े भैया, दीदी, पापा, मम्मी, दादी, बुआ, चाचा और पिंकी के साथ रहता था.उस समय लाइट बहुत आती जाती थी और ज्यादातर हम अपनी खटिया या पलंग बाहर बिछा कर सोते थे.शाम का समय था वो, ज़ब पहली बार मैंने भैया को कोई "सुपरहीरो" ड्रा करते देखा."सुपर कमांडो ध्रुव" था जम्प करने की पोज़ करते हुए जो भाई बना रहे थे.नीली पीली ड्रेस में वो मुझे बहुत अच्छा लगा.फिर समझ आया कि कॉमिक्स नाम की कोई चीज आती है जिसमे ऐसे एक्शन करते "सुपरहीरो" होते है जो लोगो को दुष्ट लोगो से बचाते है.जानकारी के लिए बता दू के मेरे भैया कॉमिक्स के बहुत बड़े फैन रहे है और किराये पे कॉमिक्स लाने और पढ़ने की आदत उन्ही की वजह से लगी थी.जो शुरुआत ध्रुव से हुई थी वो भैया के लगातार कॉमिक्स लाने से और बढ़ती गयी.मेरे घर में लगभग सारे कॉमिक्स प्रेमी रहे है. दादी धार्मिक चित्रकथा, चाचा एक्शन कॉमिक्स, मम्मी राजा रानी वाली, दीदी और बुआ डायमंड वाली, पापा हॉरर और भैया सुपरहीरो की कॉमिक्स के दीवाने थे.इन सबके चक्कर में मुझे भी कॉमिक्स का ऐसा नशा चढ़ा कि जो आज तक ख़तम नहीं हुआ.आप यकीन नहीं करोगे लेकिन मेरे क्राइम स्कूल की हर कॉपी, भाई की कॉपी, दीदी की कॉपी, पापा के ऑफिस पेपर्स, मम्मी की मैगज़ीन और यहाँ तक की घर के अखबारों तक में मैं कॉमिक्स के नाम, विलन के नाम लिखा करता था.आर्ट बनाया करता था.क्या ऐड हो या क्या कॉमिक्स के अंदर का आर्ट, मेरी ड्राइंग क्लास की कम और इन सुपरविलेन और सुपरहीरो से भारी रहती थी.पागलपन का नशा यही नहीं ख़त्म हुआ.आगे चल के मैं कॉमिक्स के सेट, कौन सी कॉमिक्स में किस आर्टिस्ट, राइटर, एडिटर, कलरिस्ट का क्या योगदान है, कॉमिक्स सीरियल नंबर, कॉमिक्स ईयर और पता नहीं क्या क्या लिख के लम्बी चौड़ी "मोस्ट वांटेड" लिस्ट बनाने लगा.घर की ऐसी कोई कॉपी नहीं बची जहा मेरी कॉमिक्स से रिलेटेड आर्ट या कोई जानकारी ना लिखी हो.बहुत बार तो रुई की तरह धुनाई भी होती थी.पता चला पापा को बर्थ सर्टिफिकेट बना के देने है और पीछे "मा कसम", "योद्धा की चीख" लिखी हुई हो.पता चला भाई को होमवर्क जमा करना हो और कॉपी में आगे नगरस्सी पे झूलता "नागराज" बना हो.जैसे जैसे बड़ा होता गया मेरा जूनून और पागलपन जो कॉमिक्स को लेके था वो बढ़ता गया.मैंने देखा कि किराये पे कॉमिक्स लाने में समस्या ये है कि उसको वापस करना पड़ता है जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं था तो मुझे कॉमिक्स कलेक्शन का पागलपन चढ़ गया.एक पागलपन ये भी था के मै अपनी खरीदी कॉमिक्स किसी को जल्दी हाथ नहीं लगाने देता था.इसके पीछे मंशा थी कि मेरी कॉमिक्स नयी जैसी बनी रहे, हाँ दुसरो की कॉमिक्स चुराने में, या मांगने में मुझे शर्म नहीं आती थी.होता ये था के इतनी मेहनत से खरीदी, या जुगाड़ करके लायी गयी कॉमिक्स ज़ब लोग मोड़ देते थे तो मुझे देख के हल्क वाला दौरा पड़ जाता था.फिर चाहे सामने मेरे से 4 गुना मेरा मामा का लड़का हो या क्लास का दादा, मैं डोगा की तरह दौड़ा कर मारता था.लोग कॉमिक्स छुपा के पढ़ते है, मैंने कॉमिक्स के लिए चोरी, डकैती, बड़ी बड़ी लड़ाई, सब कुछ किया है.सबसे मज़ा तब आता था ज़ब पापा क्लास में अच्छे नंबर लाने की "अनोखी शर्त" पर कॉमिक्स लाया करते थे.सच में उसी लालच के चक्कर में 70 परसेंट के नीचे कभी नंबर नहीं आये.फिर गर्मी की छुट्टिया हो तो मज़े से तखत पे बैठ कर या उल्टा लेट कर हलुवा खाते हुए कॉमिक्स पढ़ो, कितना मज़ा आता था बयान नहीं कर सकता.एक बुरी चीज इसमें ये भी है कि ये कॉमिक्स वाला प्यार इतना बढ़ गया था कि कॉमिक्स खरीदने के लिए घर से चोरी तक करनी पड़ी.उस बात का आज तक अफ़सोस है.हाँ पागलपन इतना किया है कि 16 की एक कॉमिक्स लेने के लिए 2 दिन 4km पैदल स्कूल जाता था.भूखे पेट रहता था और घर में किसी को पता भी नहीं चलने दिया.बड़े होने पे सबसे बड़ी दिक्कत यही है के दिमाग़ ज्यादा खुरापाती हो कर "मास्टरमाइंड" जाता है.शायद इसी का नतीजा था कि कॉमिक्स लेने के लिए डेली नयी नयी खुरपेंची किया करता था.ऐसे ही एक छोटा सा "हातिमताई" वाला किस्सा भी बताना चाहूंगा.एग्जाम शुरू होने वाले थे और उनकी फीस 200 जमा करनी थी.2 दिन की "डेडलाइन" थी मेरे पास."मेरे पापा" ने पैसे दिए और दिमाग़ में आया कि लास्ट डे जमा कर दूंगा.उन पैसो की शॉप वाले के पास "मैक्सिमम सिक्योरिटी" जमा करके कॉमिक्स ले आया किराये पे पढ़ने के लिए.क्लास में फीस मांगी गयी तो अगले दिन का बहाना बना कर टाल दिया.अब मुसीबत ये थी के अगले दिन तक वो सारी कॉमिक्स पढ़ के लौटानी थी और मेरे पास किराये के भी पैसे नहीं थे कॉमिक्स वाले को देने के लिए.तो दिमाग़ ये लगाया के उस रात बिना सोये "मोमबत्ती" की रौशनी में कॉमिक्स चाट डाली और उसकी 2 कॉमिक्स भी दबा ली.अगले दिन कॉमिक्स शॉप पे वापस करने पहुँच गया.वापस 200 मांगे के अब और कॉमिक्स नहीं पढ़नी, आपके पास और नहीं है मेरी वाली.तो वो किराया जो 20 होता था वो काट कर 180 वापस करने लगा.अब क्या करता?मेरे पास तो एक भी पैसा नहीं था.मैंने उससे झूठ बोल दिया के किराया कल आपके बेटे को पहले ही दे दिया था और दो कॉमिक्स भी उसी समय पढ़ के वापस कर दी थी.उसको शक हुआ तो उसने पढ़ी हुई कॉमिक्स का नाम पुछा.मैंने उसी दिन उसकी कॉमिक्स रखने के सीरियल को समझ कर कुछ ऊपर के नाम याद कर लिए थे जो किसमत से वही निकले.उसको लगा मैं सच बोल रहा हु तो उसने पूरे पैसे वापस कर दिए.तब जाके मैंने फीस जमा करि और मेरी जान में जान वापस आयी जैसे बांकेलाल की आती है हर कॉमिक्स में.हालांकि बाद में मुझे बुरा लगा लेकिन तब तो मैं कॉमिक्स के "अमर प्रेम" में था इसलिए खुद को माफ़ कर दिया.😄😄
लोगो का समय के साथ प्यार बदलता जाता है लेकिन मेरे केस में ये बढ़ता गया.एक दो गर्लफ्रेंड भी बनाई जिन्होने कुछ समय बाद मेरे कॉमिक्स प्रेम का सबके सामने मज़ाक बनाया और "मजबूर" होकर उन्होंने हीरे जैसा अपना बॉयफ्रंड खो दिया.कॉलेज के दोस्तों ने जो खुद को स्टाइलिश समझते थे, थोड़ा इंसल्ट भी किया, टीचरों और घर वालो ने जम के कूटा, सबकी हंसी का पात्र भी बना लेकिन ये कॉमिक्स की "प्रेम ऋतू" का "खेल ख़त्म" नहीं हुआ.वीडियो गेम बने, कम्प्यूटर गेम्स आये, जमाना बढ़ता गया लेकिन अपनी पहली पसंद हमेशा कॉमिक्स रही.आज काफ़ी उम्र हो चुकी है."ये शादी होकर रहेगी" वाली दहलीज पे खड़ा हु लेकिन आज भी दिल बचपन वाला कॉमिक्स प्रेमी है जिसने तय किया है कि शादी भी उसी से करेगा जिसके पास उसके जैसा कॉमिक्स प्रेम वाला दिल होगा.महादेव की कृपा से कल जो भी हो लेकिन "सुपर इंडियन" की तरह एक कसम मैंने भी खायी है कि 80 साल का बुड्ढा भी हो जाऊंगा तब भी कॉमिक्स का नशा ख़त्म नहीं होने दूंगा.
बाकि कहानियाँ बहुत सी है लेकिन ज्यादा लम्बा लिखा तो लोगो के प्रोफेसर कमल कांत की तरह "कोमा" में जाने के आसार है इसलिए आज इतना ही.बाक़ी फिर "काली दुनिया " होने के बाद.....🙏😎
Thursday, 9 July 2020
शक्ति और वंडर वोमेन -राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-8
शक्ति बनकर पहुंच गई बगल वाले गुप्ता जी के घर ।
गुप्ता जी और उनकी पत्नी की लड़ाई चल रही थी ।
शक्ति ने आव देखा ना ताव, दिया घुमा कर गुप्ता जी के
। गुप्ता जी बेहोश हो गए । मिसेज
गुप्ता को गुस्सा आ
गया।
मिसेन गुप्ता - ये क्या किया... अयन... तेरै बाल नोच
लू ?
गुप्ता जी की बेटी - मम्गी ! ये आप उसे बता रही हो या पूछ रही हो... खीच लो इसके बाल ।
मिसेज गुप्ता
और उनकी बेटी शक्ति के बाल खीचकर उसे पीटने लगी।
शक्ति - अरे.. स्को.... पर मे तो आपको बचा रही थी गुप्ता आंटी... आप मुझे ही क्यो मार
रही है ?
गिसेन गुप्ता - अभी मेरे इतने भी बुरे दिन नहीं आये है कि में गुप्ता जी से ही मिट जाऊ... वो
तो में पड़ोसियो को सुनाने के लिए और इनकी आवाज दबाने के लिए चिल्लाती हूँ। ये तो अब
मेरी रोज की थ्रिल बन गई है ।
शक्ति - अच्छा... अच्छा जा रही ह... हेयर क्लिप का क्या करोगी आंटी वो तो लोटा दो !
चंदा के दिन की बोहनी (शुरुआत) ही खराब हुई थी। पर एकदम तभी उसे कही से शक्ति
बनने की फिर पुकार आई। युवती समुन्द्र में डूब रही थी, शक्ति की गति इतनी तेज थी कि वो सगुन्द्र तल के अंदर ड्रिलिंग करती चली गई । जब उपर पहुंची तब तक कॉस्ट गार्स ने उस युवती को बचा लिया था । शक्ति के शरीर पर समुन्द्र के अंदर का गाढ़ा तेल चिपक चुका था।
शक्ति - शाबास... आप लोगो ने बहुत अच्छा काम किया जो इस युवती को बचा लिया ।
कॉस्ट गार्ड केडिट - पर तेरा सत्यानाश जाये काली माई...
शक्ति
पर मैने क्या किया ?
कोस्ट गार्ड केडिट वहा बार्डर के उस तरफ पकिस्तान के समुन्द्र क्षेत्र मे तुम कच्चे तेल की
खोज कर आई हों और उन्हें सब रेडीमेड मिल जायेगा! खुदाई भी नहीं करनी पड़ेगी ।
शक्ति वहा कैसे रुकती पर रास्ते मे ही उसे कहीं और से किसी नारी की पुकार आई... सहमी
हुई शक्ति एक मंदिर में पहुंची जहा एक मंडित जी अपनी पत्नी को बुरी तरह झंट रहे थे।
शक्ति - आंटी... ये क्या ये मंडित जी आपको पीड़ा पहुंचा रहे है ?
पंडिताईन जी - हा... जाउन रहे के मंदिर के चढ़ावे मे से दुई रुपिया लेय रहे... ई देख लेस
आउर डांट दिये रहें तबही तुम आयं गई रही ।
शक्ति - क्या आप चाहती है कि इन्हें सजा मिलें?
पंडिताईन जी - जबसे शॉदी हुई रही तबही से इनको मारने की सोचत रहिन ।
भीड़ जमा हो गई, मंडित जी ने मोंके की नजाकत को संभालते हुम दाँव बदला ।
पंडित जी - अरे... देख्यो... बलविंदर.. हुकुम... चप्पल पहिन के मंदिर में घुस आई रही (चंदा
आज जल्दीबाजी मे चप्पल उतारना भूल गई थी) और कारा-कारा कुछ रिसत है... हमका तो ई
चुडैल लागत है । मारो... मारो... हपक के दई दो ई का.... बाल नोच लो... पंडिताईन तुग का
ताइत हो तुहाऊ दो ईक घुमाय के...
शक्ति का आज दिन ही खराब चल रहा था... और उपर पक गुप्त स्थान पर वंडखूमेन प्रिंसपल
के साथ मिलकर शक्ति को निपटाने का प्लान बना रही थी।
प्रिंसपल
प्लॉन क्या है ?
वंडरखूमेन - देखो ... अपना टकला मत खुलाओ मे बता रही हूँ ... मेरी गुडियो की ब्रिगेड तैयार
है... प्लॉन सिंम्पल हैं ... देखते जाओ।
वंडखूमैन के एक इशारे पर उसकी "गुंडी ब्रिगेड की हजारो सदस्य आपस में लड़ने लगी और
इतनी सारी नारियो की चीख-पुकार सुनकर शक्ति के कई प्रतिस्प उन्हे मैनेज करने के लिंग
शक्ति से अलग हो गये।
प्रिंसपल - इससे क्या होगा ?
वंडखूमन - तुम्हे विलेन बनाया किसने ? ... टकले से हाथ दूर रखो । देखों शक्तिं हजारो
प्रतिस्पों में बट चुकी हैं अब मेरी गुडिया आपस में लड़ाई छोड़कर शक्ति के कमजोर प्रतिस्पों पर
टूट पड़ेंगी और इतने कमजोर स्पों को सुना देंगी । रुको मे सबको ईयरफोन पर गाइड कर लू
थोड़ी देर ।
प्रिंसपल - लेकिन ....
वंडरखूमैन - तुम्हे अपना टकला प्यारा नहीं है क्या ? ..
अच्छा अच्छा ने प्रेटिकल डेमोट्रेशन से समझाती हूँ।
वंडरखूमैन - जरा ... मुझे हलके से मारना
मेरे चीखने पर शक्ति का प्रतिस्प जरूर आयेंगा।
अपने टकले पर वंडखूमैन की टिप्पड़ियो से नाराज प्रिंसपल ने बड़ी जोर से पक गुक्का मारा
वंडखून के सर पर और वंडखूमेंन का विंग उतर गया ।
प्रिंसपल - ओह ... तो ये है सच्चाई...
आययय
वंडखूमन - इसपर हम बाद में बात करेंगे ... देखो शक्ति का प्रतिस्प आ गया
फूउउउह
...
शक्ति का प्रतिस्प बंडखूमैन की फूंक से ही उड़ गया ।
वंडखूमेन - देखा... टक... ओह... मारती रहो मेरी गुडियो... बाल खीच-खीच कर इसे भी
टकला बना दो।
प्रिंसमल - जानती हो वंडरवूगन ... गै आज तक कुबारा क्यों हूँ ?
वंडखूगन - क्यो... हो ?
प्रिंसमल - वयोकि कोई गंजी गिली ही नही.. और गिली भी तो गेरे विचारों से उसके विचार
বहीं गिले... आई लव यू... वंडरवूमैन ।
वंडरवूमन - ये बात तो मैं भी तुमसे कहना चाहती हूं.. आई लब यू 2 प्रिंसमल ।
शक्ति के प्रतिरूपों का पिटना जारी था ।