कष्टहर्ता :- 💜
💚
अफगानिस्तान के गंभीर हालात देखकर ध्रुव वहां जाने का निर्णय लेता है।
करीम - कैप्टन, क्या वहां जाना सही रहेगा क्योंकि अब तक किसी भी देश ने उनकी तरफ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया है। "
ध्रुव - कोई देश मदद को आगे आए ना आए, यह मेरा कर्तव्य है कि वहां जाकर मानवता की रक्षा करू, क्योंकि हमारा कर्म हमारे धर्म से बड़ा होता है।
और मेरा कर्म यही कहता है कि जो मुसीबत में हो उसकी रक्षा करना सर्वोपरि है तभी हम लोग सही मायने में मानव कहलाएंगे।"
रेणु - ठीक है कैप्टन, अगर आपने जाने की ठान ही ली है तो हमें भी अपने साथ ले चलिए।"
ध्रुव - नहीं रेणु, मै वहां तुम लोगो की जान खतरे में नहीं डाल सकता। इस विपदा से मुझे स्वयं निपटना होगा।"
शीघ्र ही ध्रुव अपने स्टार कॉप्टर में बैठकर अफगानिस्तान के लिए रवाना हो जाता है। अफगानिस्तान पहुंचते ही ध्रुव का मुसीबतों से सामना होना शुरू हो गया था।
अपना स्टार कॉप्टर काबुल में उतारते ही तालिबानी लड़ाके उसके ऊपर टूट लड़ते है और फायरिंग करनी शुरू कर देते है।
ध्रुव की किसी मानव की जान ना लेने की कसम आज उसे भारी पड़ने वाली थी।
मगर आज ध्रुव किसी को भी बख्शने के मूड में बिल्कुल नहीं था।
उसके मन में तालिबानों के प्रति नफरत इतनी प्रचंड थी कि आज सभी उस आग में झुलसने वाले थे।
करीब 400 लड़ाके ध्रुव के ऊपर टूट पड़े।
उनकी बंदूके तो ध्रुव का कुछ बिगाड़ नहीं पाई तो उन्होंने उसे जिंदा पकड़ने की ठान ली ताकि उसे अपने तालिबानी आका ' अबू बकर अल असद' के सामने पेश कर सके।
परन्तु जिस तरह आज ध्रुव के हाथ पैर तालिबानों के अंगो का नक्शा बिगाड़ रहे थे उससे लगता नहीं था कि ध्रुव उनके काबू में आएगा।
हालांकि ध्रुव में इच्छाशक्ति और साहस की कोई कमी तो ना थी,
परन्तु था तो वो सिर्फ एक मानव ही ना।
उससे जितना हो सका वोह लड़ा, उनके लिए जो खुद अपने लिए नहीं लड़ सके।
कुछ ही देर में ध्रुव अपनी इच्छाशक्ति, साहस और एकमात्र हथियार स्टार ब्लेड्स की मदद से उस स्थान को तालिबानों की लाशों से भर देता है। परंतु इतना लड़ते लड़ते अब उसकी इच्छाशक्ति भी जवाब दे रही थी, हालांकि उसके अंदर इस चीज की कोई कमी तो ना थी मगर उसके जख्मों से गिरते हुए खून ने उसे अत्याधिक कमजोर कर दिया था।
मैदान साफ हो चुका था। ऐसा ध्रुव को लगा इसीलिए वोह थोड़ा निश्चिंत हो गया था।
मगर तभी 2500 तालिबानों की फौज ने अचानक से धावा बोल दिया और ध्रुव को धोखे से बंदी बना लिया।
:----:
स्थान - पुल - ए - खिस्ती बाजार, कुंदुज, अफगानिस्तान।
"जहां एक समय इस बाज़ार में अफ़ग़ानिस्तान की लगभग सभी वस्तुएं मिला करती थी आज वहां गुलाम औरतों की खरीद फरोख्त चल रही है।
अफ़ग़ानिस्तान के लगभग सभी पुरुष अपने बीवी और बच्चों को यही छोड़कर देश से निकलने की फिराक में लगे हुए है। कैसे मतलबी लोग है जो अपने ही परिवार को काल व अपमान का ग्रास बनने के लिए छोड़ गए।
मै कभी ना आता ऐसे लोगो की मदद के लिए जो इतने स्वार्थी हो पर मुझसे वो टीस भी नहीं देखी गई जो यहां की औरतों और बच्चो के दिल से सिसक सिसक कर उठ रही थी।
निर्बलों पे होने वाले अत्याचार को रोकने और अत्याचारियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ही तो सूरज डोगा बना है।"
डोगा एक लबादा ओढ़े बाज़ार में प्रविष्ट होता है और तालिबानी इससे बेखबर थे।
वे तो बस इस समय लुफ्त उठाने में मग्न थे, अपनी अमानवीय कृत्यों का जो वो वंहा की महिलाओं को दे रहे थे।
"अफ़ग़ानिस्तान से भागते हुए सभी पुरुष दिख रहे हैं जो अपनी स्त्रियों और बच्चों को तालिबानी लड़ाकों के लिए छोड़ कर भाग रहे हैं।
अपनी छोटी छोटी बच्चियों को उन दरिंदों को सौंप कर अपनी जान बचा कर भाग रहे हैं ।
सोच कर कलेजा मुँह को आ जाता है।
यह कृत्य एकमात्र उनके संकीर्ण विचारधारा की देन है जिसमें स्त्रियों को एक 'सेक्स ऑब्जेक्ट ' के अलावा कुछ नहीं माना जाता। ये लोग लड़कियों और औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाकर कई दिनों तक अमानवीय यातनाएं देने के बाद सेक्स स्लेव बनाकर बेच देते है। लानत है ऐसे लोगो पे जो सिर्फ अपने बारे में सोचते है और इन लोगो पे भी जो स्त्रियों को सिर्फ भोग - क्षुदा शांत करने के लायक समझते है।
एक हमारा इतिहास उठा लीजिए , हमारे सिर कट गए हैं लेकिन हमने अपनी स्त्रियों की मर्यादा की रक्षा के लिए महाभारत कर दिया था और समुद्र तक पर पुल बाँध दिया था ।
लाखों क्षत्रियों ने सिर्फ अपनी ही नहीं , हर वर्ग की स्त्रियों की रक्षा के लिए धड़ाधड़ शीश काट दिए या तो कटा लिए लेकिन अपनी स्त्रियों की रक्षा से कोई समझौता नहीं किया।
और आज डोगा भी यहां समझौता करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं है।"
डोगा एक कोठी के सामने जा पहुंचता है और कोठी के दरवाजे को जोर से लात मारकर तोड़ देता है।
अंदर औरतों व नाबालिग बच्चियों के साथ हो रहे हैवानियत का मंजर देखकर डोगा की आंखो में खून उतर आता है।
तुरंत अपनी AK96 उतार कर आतंकियों को भूनने में लग जाता है डोगा और कहता है कि " तुम हैवानों ने हैवानियत की सारी हदें लांघ दी है। आज डोगा तुम लोगो को सिर्फ तुम्हारी हदों का अहसास ही नहीं करवाएगा बल्कि तुम लोगो को मौत का वोह नंगा नाच दिखाएगा कि तुम लोगो की जन्नत में 72 हूरो से मिलने की तमन्ना भी दया की भीख मांगेगी।"
डोगा की लगातार बरसती गोलियां, आतंकियों से सिर से उनके भेजे को फाड़ते हुए निकल रही थी।
डोगा - "आज ये कुत्ता तुम सियारो का, शेर होने के भ्रम का स्तंभ उखाड़ फेंकेगा और फाड़ खाएगा तुम्हारी चर्बियों को और नेस्तनाबूद कर देगा तुम्हारे अस्तित्व को।"
आज वाकई में डोगा के क्रोध का लावा, ज्वालामुखी बन कर फूंट पड़ा था।
गोलियों से, चाकू से, तलवारों से, हाथों से।
आज डोगा हर हथियार का प्रयोग कर रहा है।
वोह एक अपराध विनाशक होने साथ साथ एक कुशल लड़ाका भी है। आज उसकी इसी डेडली फाइटिंग स्किल्स से कई आतंकियों को 72 हूरे नसीब हो चुकी थी।
कोठी के समस्त आतंकियों को निपटाने के बाद, डोगा ने वहां की महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि " हर बार आप लोगो को मुसीबतों से बचाने कोई नहीं आएगा। अपने हक की लड़ाई आपको खुद ही लड़नी होगी। पुरुषों के भरोसे रहना या अपने आपको उनसे कम समझना बेवकूफी है। माना कि आप लोगो में उन दरिंदो जैसी शारीरिक शक्ति ना सही परन्तु साहस उनसे ज्यादा दिखाना पड़ेगा। एक बात याद रखो, हाथ नहीं हथियार सही। बस अंदर हिम्मत का ज्वालामुखी होना चाहिए।"
इसी के साथ डोगा वहां से बाहर निकल आता है मगर बाहर भी करीब 1500 आतंक के रहनुमा उसका इंतज़ार कर रहे थे।
तालिबानी - "ख़तम कर दो इस कुत्ते सी सूरत वाले काफिर को। आज अल्लाह मेहरबान है जो काफिरों की मौत हमारे हाथों लिखी है"
डोगा - "मुझे ख़तम करने में तेरी पुश्ते फना हो जाएंगी फिर भी ये कुत्ता तुम जैसे गीदड़ो को भमभोड़ने के लिए खड़ा रहेगा।"
तत्पश्चात डोगा अपने बेल्ट से ग्रेनेड निकाल कर आतंकवादियों की और फेकने लगता है और जगह जगह से तालिबानों के चीथड़े उड़ने शुरू हो जाते है। चारो तरफ से गोलियों की तड़तड़ाहट शुरू हो जाती है। अधिकतर गोलियों का निशाना डोगा ही था परन्तु वोह महारथी ही क्या जो अर्जुन की तरह चक्रव्यूह को भेद ना पाए।
डोगा उन सभी गोलियों को फूर्ति से डौज कर रहा था और बंदूकों और ग्रेनेड से आतंकवादियों को खत्म करता जा रहा था।
यकीनन आज वोह उस जगह से आतंकवाद का वजूद ही ख़तम कर देता परन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था।
डोगा एक रॉकेट लॉन्चर के रॉकेट के विस्फोट की चपेट में आ जाने से पल भर के लिए ही सही, मूर्छित हो गया।
तालिबानी भीड़ ( चिल्लाते हुए ) - कत्ल कर डालो इसे....."
"रुको" एक आतंकी हाथ उठाकर उन्हें रोकता है और कहता है कि " इस काफिर ने हमारे कई भाइयों को बेदर्दी से मौत दी है। इसे इतनी आसान मौत नहीं मिलनी चाहिए। बंदी बना लो इसे भी। इसे और उस कमांडो वाले छोकरे को एक साथ पूरी दुनिया के सामने मीडिया की लाइव कवरेज में कत्ल करेंगे, ताकि कभी किसी और काफिर की हिम्मत ना हो हमारे नेक इरादों के रास्तों में रोड़ा बनने की"
:-------------:
जगह - गाजी अमानुल्लाह इंटरनैशनल क्रिकेट स्टेडियम , जलालाबाद।
समय - शाम से 5:30 pm
आज न्यूज - ए - तालिबान की मीडिया पूरी तरह से तैयार थी डोगा और ध्रुव की मौत का लाइव कवरेज कवर करने के लिए और तैयार था खुद आका - ए - तालिबान ' अबू बकर अल असद ज़ैदी'
उन्हें मौत देने के लिए।
करीब 14000 तालिबानी आतंकियों से लबरेज़ थी वोह जगह और मैदान में थे ध्रुव, डोगा और आका - ए - तालिबान।
असद ज़ैदी - "तुम दोनों काफिर कौन हो अच्छी तरह से जानता हूं मगर तुम लोग यहां चले आओगे इसकी उम्मीद ना थी हमें।
तुम काफिर कितने ही बड़े तुर्रम खां क्यों ना हो, हमें हमारे जिहाद की राह से डिगा नहीं पाओगे।
अरे जिहाद तो अल्लाह का फरमान है और हमारी चाहत बस उस फरमान को पूरा करने में है।
और जो भी काफिर हमारे नेक रास्ते में आएगा, फना हो जायेगा।
अरे अभी तो हम जिहादियों को ' खुरासान ' से निकलकर पूरा हिन्द फतह करना है।
इंशाअल्लाह वो दिन भी जल्द ही आएगा जब पूरी दुनिया पे हुकूमत सिर्फ हमारी होगी।
तुम दोनों काफिरों की मौत की मिसाल कायम करेंगे हम, मगर उससे पहले कुछ दिखाना ज़रूर चाहेंगे हम तुम दोनों को।
फजर, ले आओ उन बांदियो को, जिन्हें देख ये यहां उन्हें बचाने आए थे। आज इन्हीं के सामने बेआबरू करूंगा सभी बांदियों को।
तालिबानी आतंकी सभी हदें पार करते हुए औरतों को खींचते हुए सरे राह उन्हें बेआबरू करने लगे।
उन लोगो ने आतंकियों से रहम की भीख मांगी मगर उन दरिंदो की आखों में बस दरिंदगी ही नजर आ रही थी। हैवानियत का मैल उनके कानों में जम सा गया था जिसके आगे उन मासूम लड़कियों और औरतों की करुण वेदनाएं भी उनकी अंतरात्मा को झकझोड़ नहीं पा रही थी।
डोगा और ध्रुव भी बेबसी के मारे अपने होठों को भींचे हुए थे और आंखो में उन्हें इस अमानवीय कृत्य से ना बचा पाने का अपराधबोध आंसू बन के निकल रहा था।
शायद उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था।
या शायद था ?
अचानक से उस स्टेडियम में धमाका हुआ।
असद ज़ैदी चौंका कि ये क्या हुआ ? किसने किया ?
नज़रे उठा के देखी तो एक शख्स स्याह बादलों को चीरता हुआ मजलूमों की उम्मीद बनके चला आ रहा था।
उसकी आंखो से विष ज्वाला की लपटे निकल रही थी और मुंह से स्याह हरा धुआं आतंकवाद को खाक में मिलाने के लिए निकल रहा था।
हां आतंकहर्ता ही था वो जो उनकी पुकार को नकार ना सका।
और उस काल को हरने महाकाल आ गया था।
अब तांडव होना तय था।
"अरे, ये तो नागराज है, हमारे नेक इरादों का सबसे बड़ा दुश्मन। मगर ये तो मर गया था, खबीस की औलाद है ये फिर से जिंदा कैसे हो गया। मगर जिंदा हो भी गया है तो दोबारा मरेगा।
हमारी इस अकूत फौज के आगे नहीं टिकेगा एक अकेला शैतान।
मार डालो इसे।"
नागराज - "असद ज़ैदी, नागराज कोई अबला नहीं, जिसे तेरे तालिबानी दरिंदे अपनी बर्बरता का शिकार बना ले,
नागराज को फना करने का ख्वाब देखने वाले, तेरी हस्ती फना हो जाएगी, मेरी हस्ती को मिटाते - मिटाते।
नागराज की कलाइयों से अनगिनत सांप निकालने लगे और सर्प रस्सी बनकर स्टेडियम के उन मेटल ग्रिल से लिपट गए जो स्टेडियम को सहारा दिए हुए थे।
और नागराज ने वक़्त ना बर्बाद करते हुए तुरंत अपनी सर्प रस्सी खींच डाली जिसके फलस्वरूप पूरा स्टेडियम भड़भड़ा कर ढह गया और उसमेए बैठे हज़ारों के हिसाब से आतंकवादी मारे गए।
असद ज़ैदी - ( चिल्लाते हुए ) "या अल्लाह, यह काफिर तो कहर ढा रहा है।"
नागराज - "आज तुम लोगो को आतंकहर्ता का वो कहर दिखाऊंगा जिसे देखकर तुम लोगो की रूहे भी सरसरा जाएंगी
बर्बरता का वो नज़ारा दिखाऊंगा, जिसे देखकर तुम लोगो की सम्मिलित बर्बरता भी अदनी सी मालूम चलेगी।"
और वाकई में, आज आतंकहर्ता ने आतंकवाद को समूल नाश करने की जिद ठान ली थी।
नागराज के हाथ से ध्वंसक सर्प निकाल हर जगह तालिबानों में तबाही मचा रहे थे।
आज मौत का वो तांडव हो रहा था जिसे देखकर अगर यमराज भी आते तो उन्हें भी मौत का भय हो जाता और अपने कदम पीछे खींच लेते।
बर्बरता का जो मंजर उस हुजूम को दिखाया जा रहा था कि सभी में एक देहशत सी भर गई।
नागराज के तीव्र विष से आतंकियों के शरीर कोढ़ के जैसे गल रहे थे और कुछ को तो अपने नंगे हाथों से फाड़े दे रहा था वो आतंकहर्ता।
ना जाने कितने ही आतंकियों को नागफनी सर्पो से मक्खन के जैसे काटता चला गया वह।
यकीनन उसने जो किया वो तांडव ही था, मौत का तांडव।
उसके आगमन ने डोगा और ध्रुव के अंदर के हौसले को जगा दिया था अतः उन दोनों ने भी अपने बंधन तोड़ डाले और लड़ाई में नागराज का साथ देने लगे।
शीघ्र ही तीनों ने उस जगह को तालिबानों की लाशों से भर दिया और अबू बकर अल असद ज़ैदी भी नागराज के हाथों मारा गया।
:- समाप्त -: