दोस्तों,आज का टॉपिक है,कॉमिक्स की कालाबाजारी का,वास्तव में कालाबाजारी होती क्या है,इसको समझने का प्रयास करें।
जब बाजार में किसी वस्तु की कम मात्रा होती है,और वो हमें लेनी ही तो,तो दुकानदार उस वस्तु को अपने मनपसंद दाम पर बेचते है,जबकि उसका रेट बहुत कम होता है।लेकिन हम फिर भी किसी का दबाव के वो वस्तु खरीद लेते है, इसी को कालाबाजारी कहते है।या आसान शब्दों में कहे कि जब कुछ वस्तु एक दुकानदार के पास होती है,और वो अपने दामो पर उसको विक्रय करे,और हम बगैर माप तोल के उससे ले लें।यही blackmarkting होती है।
इसी प्रकार आज के टाइम में कॉमिक्स के साथ भी यही हाल है,कुछ लोग कॉमिक्स के आगे rare लगाकर उसके प्रिंट रेट से 50 से 100 गुणा में बेच देते है,और खरीदने वाले भी खुशी खुशी उसको खरीद लेते है,जिससे बेचने वालो का हौसला बढ़ता है।और वो कुछ कॉमिक्स को रिप्रिंट करवा लेते है,और उनको भी rare कहकर बेच देते है।
मैंने कई फेसबुक ग्रुप पर rare k नाम पर काफी ग्रुप देखे है,जिनमें 32 पेज वाली कॉमिक्स को 400 से 600 में बेचा जाता है,जिसमें मनोज,तुलसी, पिटारा और कुछ पब्लिकेशन शामिल है,और डाइजेस्ट कॉमिक्स के प्राइस 1000 तक लिए जाते है।और कुछ का दाम 3000 तक पहुंचा दिया जाता है,जिसमें इंद्रजाल और डायमंड पब्लिकेशन शामिल है,और कई भाई इनको खरीद भी लेते है,यह एक हास्य पद स्तिथि होती है।मेरे ख्याल से यह कॉमिक्स जुनून नहीं,मूर्खता होती है।
कॉमिक्स खरीदे जरूर,लेकिन कालाबाजारी को बढ़ावा ना देकर।
कुछ भाई रनिंग पब्लिकेशन की कॉमिक्स नहीं खरीदते,क्योँकि वो इनको रेयर नहीं समझते ,और कुछ सालो में यही कॉमिक्स रेयर की कैटागिरी में आ जाती है,तब वो भाई रेयर क नाम पर इस कॉमिक्स का प्राइस १० से २० गुना देने के लिए तैयार हो जाते है'