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Thursday 30 July 2020

भविष्य में --भाग - 3-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-15

भविष्य में ---- भाग - 3

डोगा की चुगलखोरी के कारण तिरंगा की नागराज द्वारा जबरदस्त ठुकाई और फिर से डोगु की चुगलई के कारण शक्ति के हाथों हुई तिरंगा की सर्वोत्तम ठुकाई के कारण तिरंगा कई जगह से सूजा हुआ नजर आ रहा था ।

अपने दर्द को बर्दास्त कर वो बाथरूम में गया और पानी का नल तेज कर शावर ऑन कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा । बेचारे ने देखा नही की बाथरूम में भेड़िया कमोड पे बैठा हुआ है ।

भेड़िया – क्या हुआ तिरंगा भाई ? 

तिरंगा – मत पूछों .....  

भेड़िया – ठीक है नहीं पूछता ।

तिरंगा – अबे पूरी बात तो सुन ले । मै कह रहा था की मत पूछों ... दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है .... 

भेड़िया – जिंदगी भर का दर्द तुम्हे इनाम दिया है ।

तिरंगा – अबे मुझे बोलने दे न ।

भेड़िया - कैसे बोलने दू । मैंने सब पहले ही सुन लिया था । बाहर डोगा की होशियारी तुझ पे भारी पड़ गयी, है ना !

तिरंगा – होशियारी करके शक्ति को पटा लिया है उसने । अब अगर बदला लेने के लिए मैंने कुछ किया तो शक्ति मार-मार के मेरी कढ़ाई सुलगा देगी ।

भेड़िया – पर बदला तो लेना पड़ेगा । तुम्हारा दर्द मुझसे देखा नही जा रहा । जैसा मै कहता हू वैसा करो ।

तभी आवाज आती है पुईई .... 

तिरंगा (घिनाते हुए) – नहीं मै ये नही कर सकता ।

भेड़िया – अरे कमोड पे बैठा हू पू-पुई तो होती रहेगी । मै कुछ और करने को कह रहा था ।

तिरंगा – ओ, फिर ठीक है । बताओ क्या करू ? 

भेड़िया – भाई डोगा ने शक्ति को पटा लिया है ये बात मोनिका को बता दो । बाकी सब वो सम्भाल लेंगी ।

तिरंगा – अगर तू कमोड पे नही होता तो अभी तुझे अपने कंधे पे उठा के डांस करने लगता मै ।

भेड़िया – ये तमन्ना किसी और दिन पूरी कर लेना वरना तू थोरा गिला और पिला हो जायेगा हीहीही ।

इधर डोगा शक्ति को अपने हाथो से समोसे खिला रहा था और नागराज ने चटनी वाली प्लेट पकड़ रखी थी ।

नागराज – ये समोसा खाने में कैसा लगता है ? 

डोगा – विशर्पी तुझे समोसा नही खिलाती ? 

नागराज – नहीं हम दोनों तो बस दूध पीते है ।

शक्ति (हसते हुए) – ये बताओ शादी के बात तुम हनीमून मनाने के लिए कहा गये थे ?

नागराज – वही नाग्दविप में एक बिल था । दोनों ने सर्प रूप धारण किया और बिल में चले गये ।

डोगा (बहुत जोर से हसते हुए) – अबे बिल में जाके मशरूम उगा रहे थे क्या ? कैसे किलो मशरूम दिए ? यहा ले आते मै खरीद लेता तुझसे और पका के विशर्पी को खिलाता ।

नागराज – विशर्पी को मशरूम बाद में खिलाना पहले पीछे देख !

डोगा पीछे देखता है और शक्ति के मुह के पास ले जाता समोसा खुद खा जाता है ।

डोगा – मेरी बीवी से कोई मुझे बचाओ । 

मोनिका (शक्ति को समोसा खिलाता देख गुस्से में लोमड़ी बन जाती है) – मै समोसा लाने को कहू तो मुझे आलू ला के दे देते हो की खुद से पका लो और यहा इस नील की खेत में समोसा ठूस रहे हो ।

शक्ति – जबान सम्भाल के मोनिका ।

मोनिका (शक्ति को बाल से घसिटते हुए तीन-चार चपेट मार) – चुप कर ! मेरे और मेरे पति के बीच आई तो दोबारा किसी के बीच में आने के लायक नही छोडूंगी तुझे ।

डोगा – अरे जानू .... !

मोनिका (आग-बबूला होते हुए) – जानू ! क्या बात है । शक्ति के लिए बहुत प्यार परवान चढ़ रहा तुम्हारा ।

डोगा – अरे नही मोनिये मै मै तो तुम्हे जानू कह रहा था ।

तिरंगा – थोरी देर पहले तो शक्ति से कह रहे थे की .... जानू समोसा खा लो ।

डोगा – मे ... मैंने ऐसा कुछ नही कहा था मोनिए ।

पर मोनिए (मोनिका) कहा कुछ सुनने वाली थी । अब तो बस तांडव करना बाकि था । डोगा की धुनाई ऐसे शुरु हुई जैसे पूरे ब्रम्हांड में भूकंप आ गया हो ।

मोनिका की मार से डोगा की सारी मर्दानगी बहार निकलने लगी और जिन्दगी में पहली बार वो चिल्लाया ।

डोगा – अरे माफ कर दे पत्नी कही की । कसम खाता हू आज के बाद समोसा क्या चटनी को भी हाथ नही लगाऊंगा । ना खुद खाऊंगा न किसी को खिलाऊंगा ।

मोनिका – तू कुत्ते की दुम है । जानती हू सुधरेगा नही । ब्रम्हांड को बचा के घर पे आ । रही सही कसर वहा पूरी करुँगी । गुरर्र ।

और डोगा का मुरब्बा बना के मोनिका वहा से चली गयी ।

शक्ति – काली माँ का एक रूप तो मै हू पर मोनिका तो आज साक्षात् काली माँ लग रही थी । डोगु मुझसे दूर रहियो आज के बाद नही तो तेरे साथ साथ मेरी भी धुनाई कर जाएगी ये ।

डोगा – कोई बाम लाओ रे ! बहुत दुःख रहा । कैसे बताऊ की कहा कहा दुःख रहा ।

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आगे की कहानी फिर कभी ! हीहीही .....

भविष्य में -- भाग - 2-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-14

भविष्य में ---- भाग - 2

शक्ति द्वारा नागराज की सम्पूर्ण ठुकाई के बाद ----

तिरंगा – रहने भी दो राज .... प्रकाश की गति से जो तुहार धुनाई हुई है उससे बचना तेरे लिए नामुमकिन ही नही मुश्किल था ---- खिखिखी ।

डोगा ( पेट पकड़ के ) – हिहिहिः । ही हाहाहा । हीईई ....

शक्ति (डोगा के कान मडोड़ते  हुए) – मुझे डाउट है की तू मुझ पे हस रहा है ....!

डोगा – अले नही-नही शक्ति मै तुम्पे नही तिरंगा की चालबाजी पे हस रहा हू ।

नागराज – कैसी चालबाजी ?

डोगा – जब तुमने कहा की “ चंदा की सफेदी को छिपाने के लिए नील में डूबकी लगाने वाली औरत ..... (टुच्ची औरत) तो हम सब ने अपनी हँसी रोक ली वरना शक्ति उलटे हाथ और सीधे पैर से हम सब की धुनाई कर देती पर तिरंगा दिमाग लगा के ठहाके मार  खिखियाने लगा । खिखियाते हुए बस तुम्हारी बेबसी पे एक डायलॉग झूठ-मूठ का बोल दिया ताकि शक्ति तिरंगा की चालबाजी ना पकड़ पाए । 

तिरंगा (घबराहट में) – अरे नही ... ए ... ऐसा क ... कुछ भी नही ....

शक्ति (क्रोध में तीसरा नेत्र ओपन किये) – आज इस कटोरा-कट बाल वाले का भुनगा बना के छोडूंगी ।

नागराज (शक्ति को तिरंगा की पिटाई करने से रोकते हुए) – अरे बस–बस शक्ति बस । अपने नाजुक हाथों को कितना कष्ट दोगी जरा हमे भी मौका दो । बहुत देर से हाथ खुजा रहा था मेरा ।

शक्ति को ना पिट पाने की खुजली नागराज तिरंगा की धुनाई कर के मिटाने लगता है ।

तिरंगा (दर्द में जोर-जोर से चिल्लाते हुए) – आई अबे बस कर इस कटोरे-कट की जान लेनी है क्या ?

तिरंगा की दर्द भारी चींखे सुन के शक्ति का क्रोध शांत हो जाता है और नागराज को तिरंगा की धुनाई करने से रोक देती है ।

तिरंगा (बिलखते हुए) – इत्ती धुनाई .... नागराज के बच्चे अगर तू कोई विलन होता तो सच में अभी तेरी इतनी ठुकाई करता की तुम्हे तुम्हारा एकलौता वस्त्र बदलने की जरूरत आ पड़ती ।

तिरंगा की बात सुन और दर्द में उसे रोता देख शक्ति और नागराज हसने लगते है ।

डोगा (बहुत जोर की) – खिखिखी ।

शक्ति (फिर से डोगा के कान पकड़ते हुए) – मुझे इस बार भी डाउट हो रहा की तू मुझ पे हस रहा ।

डोगा – हंसू नही तो क्या करू तुम दोनों हो ही बेवकूफ ।

नागराज (गुस्से) – देख डोगु ... शक्ति भले बेवकूफ होगी पर मै नही ।

शक्ति (नागराज के फन वाले बाल नोचते हुए) – क्या कहा मै बेवकूफ ....

नागराज – अरे नही-नही शक्ति वो बस ऐसे ही मुह से निकल गया .... तुम नही मे .. मै बेवकूफ । ये बात तो जग जाहिर है । तु... तुम गुस्सा न करो ।

शक्ति (गुस्सा ठंडा होते ही) – ठीक है ।

नागराज – बोल बे डोगू । कैसे हुए हम दोनों बेवकूफ ?

शक्ति (फिर से गुस्सियाते हुए) – क्या कहा .... ?

नागराज – अले ऐसे बात-बात पे तुम आँख में अंगारे क्यों भर लेती हो .... मै बेवकूफ तुम नही । बोल डोगू ... कब तक चुप रहेगा मेरी फिर से धुनाई होने के बाद बोलेगा क्या ?

डोगा – अरे इस तिरंगा ने फिर से उल्लू बना दिया शक्ति को और तुझे पहली बार उल्लू बनाया इसने ।

शक्ति और नागराज – वो कैसे ?

डोगा – कोई विलन भी हमसे कुटाने के इतनी जोर से नही चिल्लाता जितनी जोर-जोर से तिरंगा चिल्ला रहा था । बहुत जोर का दिमाग लगाया इसने । पिटाई के वक्त जोर-जोर से गला-फाड़ चिल्लाओ जिससे उसकी पिटाई करने वाले का दिल पसीज जाये और पिटाई न करे ।

शक्ति – मतलब ये ढेढ़-शाना नाटक कर रहा था .... इसकी तो ....

और इसी के साथ शक्ति के उलटे हाथ और सीधे पैर तिरंगा पर बरसने लगे । और इस बार दर्द की लहर से तिरंगा सच्ची में गलाफाड़ चींख रहा था पर शक्ति के प्रकाश की गति से चलते हाथ-पैर नही रुके !

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आगे की कहानी किसी और दिन --- 

भविष्य में --पार्ट -1-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-13

भविष्य में ----पार्ट -1

रक्षक मंडली शादीशुदा जिन्दगी में मग्न है पर साथ में अपने शहर के साथ-साथ ब्रम्हांड की भी रक्षा करने में कोई कमी नही करते थे | एक दिन ब्रम्हांड की रक्षा के लिए सभी रक्षकों की जरूरत आन पड़ी ।

सब उपस्थित हो गये पर ध्रुव नही ---

नागराज – ये धरू कहाँ है उसके बगैर ब्रम्हांड को बचाना नामुमकिन ही नही मुश्किल है ।

शक्ति – नागमणि कौन से स्कूल ले जाता था तुझे ..... कहावत भी ठीक से नही आती ।

नागराज – चुप कर चार बूंदों वाली ... भाषण मत झाड़ ।

शक्ति - चार बूंदों वाली .... क्या मतलब चार बूंदों वाली ?

तिरंगा – तुमने वो ऐड नही देखा ... उजाला -- चार बूंदों वाला जिससे हर कपड़ा नीला हो जाता है ।

शक्ति ( क्रोध में ) – नागराज के बच्चे आज तुझे टुच्चा बना के छोडूंगी ... गुर्र्र्रर ।

और इसी के साथ नागराज पर शक्ति के लहकते चांटे और लात चलने लगे हर वार से के साथ नागराज की खाल उखड़ती जा रही थी और बेचारा जलन से चिल्लाने के लिए मुह तो फाड़ रहा था पर चिल्ला नही रहा था वरना बेचारे की घनी बेइज्जती हो जाती रक्षक मंडली के बीच ।

फाइनली शक्ति की पिटाई बंद हुई और नागराज जगह-जगह से हल्का फुल्का सूजा हुआ दिखाई देने लगा ।

शक्ति – अब बोल टुच्चे बना दिया ना मैंने तुझे टुच्चा ।

नागराज – नारी पे हाथ नही उठाता वरना आज तुझे टुच्ची बना देता .... चंदा की सफेदी को छिपाने के लिए नील में दुबकी लगाने वाली औरत ।

तिरंगा – रहने भी दो राज .... प्रकाश की गति से जो तुहार धुनाई हुई है उससे बचना तेरे लिए नामुमकिन ही नही मुश्किल था ---- खिखिखी ।

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आगे की कहानी किसी और दिन -----

अमित कुमार की कलम से हास्य लेख (आधारित राज कॉमिक्स)

ऐसे ही कुछ भी

नागराज सुबह ही भागता हुआ ध्रुव के घर पहुँचा और ध्रुव से कहता है -जल्दी चलो महामानव ने महानगर पर हमला कर दिया है अब तुम ही कुछ कर सकते हो
ध्रुव-ठीक है चलो।
(मन ही मन सोचता है अभी तो काढा भी नहीं पिया है और काढा भी खत्म हो गया,लगता है आज इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी) 
घर से थोडी़ दूर चलके हकीमजी का घर के पास ध्रुव जमीन पर गिर पडा।
नागराज-क्या हुआ ध्रुव
ध्रुव-पता नहीं क्यों पेट में बहुत दर्द हो रहा है पर तुम मेरी चिंता मत करो महानगर वालों को हमारी जरूरत है जल्दी चलो
नागराज-पर तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही, एेसा करते है ये पास ही हकीम जी रहते है,इनको दिखा लेते है।
हकीम जी के घर
नागराज-देखिये हकीम जी ध्रुव को क्या हुआ

हकीम जी ध्रुव को देखते ही सब समझ जाते है कि शायद इसका काढा खत्म हो गया है कल ये ले जाना भूल गया था
हकीमजी-इसे बराबर के कमरे में लिटा दो,देखता हूँ।

कमरे के अंदर
ध्रुव फुसफुसाते हुये-हकीमजी काढा खत्म हो गया
हकीमजी धीरे से-मै भी समझ गया था काढा तैयार है जल्दी से पी लो
ध्रुव ने जल्दी से काढा पिया और हकीमजी के पैर छुये-आज आपने मेरी इज्जत बचा ली
हकीमजी-बस कर पगले अब रूलायेगा क्या?

दोनो कमरे से बाहर आते है

नागराज-इतनी जल्दी ठीक हो गये ध्रुव,क्या जादू कर दिया हकीमजी ने?

हकीमजी मक्कारी वाली हँसी हँसते हुये-हीहीही,कुछ नहीं पेट में गैस इकट्ठी हो गयी थी,दवा दे दी है अब कुछ ही देर में हवा घूम जाएगी पर थोड़ा दूर रहना ध्रुव से।
ध्रुव भी खीखीखी करके हँसने लगता है

नागराज गुस्से में- ओ काढा़ पुरूष ज्यादा खीखीखी मत कर सर्प वाले कान है मेरे,सब फुसफुसाहट सुन ली मैनें,अब जल्दी चल महानगर भी पहुँचना है।

ये कह कर नागराज ने ध्रुव को खींचा, ध्रुव का बैलेंस बिगड़ा और ध्रुव गिर पड़ा,हड़बड़ा कर ध्रुव बेड पर से गिर पड़ा वो पसीना पसीना हो चुका था उसे अहसास हुआ वो सपना देख रहा था,उसने भगवान का शुक्रिया किया चलो शुक्र है कि चलो किसी को इस राज के बारे में किसी को पता नहीं चला।

सजन चौहान की कलम से

दोस्तों आज मैंने एक बात नोटिस करी जब मेरे paytm में पैसे ख़त्म हो गए थे और सिर्फ मेरे पास सिर्फ case पड़े थे तो में कॉमिक्स लेने आपने पास के ही बुक शॉप पर गया था, उस बुक शॉप वाले ने मेरे सामने कम से कम 150 कॉमिक्स रख दी और मैं कॉमिक्स सिलेक्ट करने लगा तभी बहा पर एक व्यक्ति आता है पेन और डायरी खरीदने और उसकी नजर मेरे सामने रखी कॉमिक्स पर जाती है और बह व्यक्ति मुझसे पूछता हे--

बह व्यक्ति:-  क्या राज कॉमिक्स अभी भी आरही है ?
मैं:- यह तो कई सालों से आरही है।
बह व्यक्ति:- मैं समझा की राज कॉमिक्स कई साल पहले ही बंद हो गई।
मैं:- जी बह मनोज और तुलसी की बंद हुई थी। और अब तुलसी भी फिर से रीप्रिंट हो रही है।
बह व्यक्ति:- क्या लोग इसे अभी भी पड़ते है।
मैं:- कॉमिक्स पड़ने वालो की कमी थोड़ी है । मैंने उन्हें हेल्लो बुक माइन व राज कॉमिक्स ग्रुप के बारे मैं बताया तो बह व्यक्ति तुरंत ग्रुप में ऐड हो गया और मुझसे बोला की अब मैं भी कुछ कॉमिक्स लेकर जाऊंगा और मेरे साथ कॉमिक्स चुनने लगा और 5 कॉमिक्स खरीद कर ले गया पर मै कॉमिक्स चुनता रहा तभी बहा पर दूसरा व्यक्ति आता है और उस व्यक्ति की भी नजर कॉमिक्स पर पड़ती है और बो मुझसे बोलता है ये तो हमारे ज़माने की कॉमिक्स है लोग अभी भी बच्चो की तरह इन कॉमिक्स को पढ़ते है मैंने कहा इन्हें सिर्फ बच्चे ही नहीं सभी उम्र के लोग पड़ते है तो बह व्यक्ति मुझसे बहस करते हुए मुझसे कहता है कि ऐसा हो ही नही सकता, तब मैने फिर फेसबुक खोल लिया तब बह व्यक्ति चोंक गया और बोला की कैसे लोग है अभी भी कॉमिक्स पड़ते है मैंने उसपर ध्यान ना देते हुए कॉमिक्स चुनने लग गया तब बह जाने लगा , थोड़ी दूर जाने के बाद बह व्यक्ति बापस आकर बोलता है कि मैं अपने बच्चो के लिए ले लेता हूँ कॉमिक्स बो भी तो जानेगे हमारे ज़माने की कॉमिक्स के बारे में तब बह 2 कॉमिक्स खरीद कर ले जाता है तब मुझे लगता है कि कॉमिक्स पड़ने बालो की अभी भी कमी नहीं है बस उन्हें पता नहीं है कि कॉमिक्स अभी भी मिलती है उन्हें सिर्फ इतना ही पता की diamond comics ही मिलती है अगर ज्यादातर लोगो को पता चल जाये की राज कॉमिक्स अभी भी मिलती है तो तो भारत में भी कॉमिक्स ज्यादा मात्रा में बिकेगी जिससे भारत की कॉमिक्स इंडस्ट्री भी बहुत तरक्की करेगी बस जरूरत है लोगो को कॉमिक्स के प्रति जागरूक करने की 
और मैं भी 16 कॉमिक्स खरीदने के बाद घर बापस लोट आया ।
और रही बात की लोग कहते है कि नितिन मिश्रा जी की कहानी लंबी होती है तो उन्हें कहानी लंबी इसलिए लगती है क्योंकि कॉमिक्स देरी से आती है अब सर्वनायक ही मान लीजिए ज्यादतर लोग कहते है कि सर्वनायक की कहानी लंबी है तो मैं उन्हें बता दू की हो सकता है कि नितिन मिश्रा जी ने सर्वनायक की कहानी कब की समाप्त कर ली हो और कॉमिक्स देरी के आने की बजह से हमे लगता है कि कहानी लंबी बना दी है । अब मुझे पता है कि आप भी कुछ राय जरूर देना चाहोगे कमेंट में तो मेरे पोस्ट के कमेंट में आपका स्वागत है।
               धन्यवाद

# राज कॉमिक्स है मेरा जूनून
# जूनून जिन्दा है

Tuesday 28 July 2020

दीपक वर्मा की कलम से

मेरा कॉमिक्स सफर: कुछ चुलबुली यादें

आज बहुत दिन के बाद कुछ लिख रहा हूँ। 

लगभग 3-4 साल का रहा होऊंगा जब मैंने कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया । मैं उन कुछ खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्होंने कॉमिक्स से ही पढ़ना सीखा । 

पापा एक कॉमिक्स लेकर आये थे "चाचा चौधरी और राका" । उसके चित्र देखकर मैं बड़ा आकर्षित हुआ था। फिर उसी से जैसे छोटे बच्चों को एक एक अक्षर मिलवा कर एक शब्द पढ़ना सिखाया जाता है मैंने वैसे कॉमिक्स पढ़नी सीखी और फिर चाव चाव में कई सारी पढ़ डालीं । इससे हुआ ये कि मुझे अपनी स्कूल की हिंदी की किताबों में से (उस समय बाल भारती चला करती थी) बिना एक-एक अक्षर मिलाये पूरा पूरा शब्द ही पढ़ने की "अद्भुत मायावी" शक्ति प्राप्त हुई । 

फिर तो पढ़ने का ऐसा शौक लगा कि क्या बताऊँ।
ऐसी उत्कंठा होती कि बस अगली कक्षा में आते ही नए पाठ्यक्रम की बाल भारती पढ़ने को मिल जाये । जैसे ही हत्थे चढ़ती पूरी पढ़ डालता ।

जानता हूँ कि पोस्ट थोड़ी लम्बी हो रही है पर आप धैर्य बनाए रखें । 😁

थोड़ा बड़ा हुआ तो पता लगा कि कॉमिक्स किराए पर भी मिलती हैं । बस मम्मी से जिद करके कॉमिक्स किराए पर ले आता और पढ़ता । एक बार यही पापा को पता लगा तो उन्होंने खूब डांटा पर ये सिलसिला रुका नहीं ।

धीरे धीरे डायमंड कॉमिक्स से राज कॉमिक्स पर आया । 

उस समय एक विज्ञापन देखा था नागराज की किसी कॉमिक्स का । बस उसे पढ़ने की इच्छा बलवती हो उठी ।
फिर क्या था मम्मी को मक्खन लगाने का सिलसिला शुरू हुआ, मक्खन काम करने लगा था लेकिन वह मक्खन कब चूने में परिवर्तित हो गया, पता भी ना चला। 
शीघ्र ही चाचा जी के कंप्यूटर से भी तेज दिमाग की तरह यह चूना लगाने की प्रक्रिया तेज़ होती गयी और अंततः सफलता प्राप्त हुई । 

पहली कॉमिक्स पढ़ी "नागराज" । 
बहुत पसंद आई !
फिर तो बस अधिकतर नागराज की ही कॉमिक्सें पढ़ने लग गया । 

फिर किसी दिन दुकान पर सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्सें दिखीं ।
एक ले आया । 
कॉमिक्स थी "रोमन हत्यारा" । 
फिर मैंने नागराज और ध्रुव, दोनों ही चरित्रों को पढ़ना शुरू कर दिया।

आशा है कि आप बोर हो रहे होंगे और मुँह फाड़ के उबासी ले रहे होंगे । 😄

एक वाक़या जरूर बताना चाहूंगा । 
एक बार ध्रुव की एक कॉमिक्स का विज्ञापन देखा । 
कॉमिक्स थी "आत्मा के चोर" । 
मैंने सोचा कि ध्रुव की आत्मा ही अगर अलग हो गयी तो वो तो मर जायेगा । 
क्या हुआ होगा उसे? आदि आदि!

बस फिर तो उस कॉमिक्स को पागलों की तरह ढूंढना शुरू किया । कॉमिक्स की दुकान वाले भैया भी उकता गए थे कि ये तो रोज़ ही पूछने आ जाता है (जैसे आप लोग मेरी पोस्ट पढ़ पढ़ के उकता गए हो... तो नोंच लो बाल ! 😆 )

इतनी ज्यादा बार दुकान पर पता करने गया कि कई बार तो कॉमिक्स की दुकान के बगल वाली दुकान से दूध ब्रेड भी लेने जाता तो कॉमिक्स वाले भैया दूर से ही कहते "नहीं आयी अभी" !

खैर! किस्से तो बहुत हैं जैसे किताबों के बीच कॉमिक्स छुपाना, पिटने से बचने के लिए दोस्त के बैग में रखना, इत्यादि । फिर किसी दिन बताऊंगा, वरना आप लोग गालियां दोगे (दे दो, क्या उखाड़ लोगे! 😆 )

तो इसी के साथ इस पोस्ट का समापन करता हूँ। 
भई! अपने अपने काम-धंधे देखो, मेरा तो ये रोज़ का नाटक है ! 😂

Friday 10 July 2020

अभिषेक मिश्रा की कलम से

वैसे तो ये पोस्ट हेलो बुक माइन के लिए लिखी थी लेकिन सोचा थोड़ा पब्लिसिटी बटोर ले और उनका आईडिया भी पसंद आया तो इस ग्रुप में भी चेप रहा.पसंद आये तो लाइक करना नहीं तो बांकेलाल कॉमिक्स वाले राक्षस की तरह छैया छैया नाच करके डरा दूंगा.चलते है भेड़िया देवता के आशीर्वाद के साथ🐶
मेरे बहुत से मित्र जो खुद कॉमिक्स प्रेमी है वो आये दिन पुछा करते है मेरे कॉमिक्स प्रेम के बारे में.मेरे कलेक्शन के बारे में.कई बार मुझे इग्नोर करना पड़ता है तो कई बार छोटे छोटे पार्ट में कहानी सुनकर शांत कर देता हु.आज यहाँ सबके कॉमिक्स से जुड़े निजी अनुभव देखे तो सोचा अपना पिटारा भी आज ही खोल लिया जाये.बहती गंगा में हाथ धोना ज्यादा सही रहता है.😁😁
बात तब की है ज़ब मैं "4 साल का परमाणु" बन चूका था और "बुद्धिपलट" की तरह बचपन से ही "शैतान" था.पूरी तरह तो नहीं लेकिन थोड़ा थोड़ा "काला अक्षर भैंस बराबर" पढ़ना और चित्र देख कर समझना आता था. मैं अपने बड़े भैया, दीदी, पापा, मम्मी, दादी, बुआ, चाचा और पिंकी के साथ रहता था.उस समय लाइट बहुत आती जाती थी और ज्यादातर हम अपनी खटिया या पलंग बाहर बिछा कर सोते थे.शाम का समय था वो, ज़ब पहली बार मैंने भैया को कोई "सुपरहीरो" ड्रा करते देखा."सुपर कमांडो ध्रुव" था जम्प करने की पोज़ करते हुए जो भाई बना रहे थे.नीली पीली ड्रेस में वो मुझे बहुत अच्छा लगा.फिर समझ आया कि कॉमिक्स नाम की कोई चीज आती है जिसमे ऐसे एक्शन करते "सुपरहीरो" होते है जो लोगो को दुष्ट लोगो से बचाते है.जानकारी के लिए बता दू के मेरे भैया कॉमिक्स के बहुत बड़े फैन रहे है और किराये पे कॉमिक्स लाने और पढ़ने की आदत उन्ही की वजह से लगी थी.जो शुरुआत ध्रुव से हुई थी वो भैया के लगातार कॉमिक्स लाने से और बढ़ती गयी.मेरे घर में लगभग सारे कॉमिक्स प्रेमी रहे है. दादी धार्मिक चित्रकथा, चाचा एक्शन कॉमिक्स, मम्मी राजा रानी वाली, दीदी और बुआ डायमंड वाली, पापा हॉरर और भैया सुपरहीरो की कॉमिक्स के दीवाने थे.इन सबके चक्कर में मुझे भी कॉमिक्स का ऐसा नशा चढ़ा कि जो आज तक ख़तम नहीं हुआ.आप यकीन नहीं करोगे लेकिन मेरे क्राइम स्कूल की हर कॉपी, भाई की कॉपी, दीदी की कॉपी, पापा के ऑफिस पेपर्स, मम्मी की मैगज़ीन और यहाँ तक की घर के अखबारों तक में मैं कॉमिक्स के नाम, विलन के नाम लिखा करता था.आर्ट बनाया करता था.क्या ऐड हो या क्या कॉमिक्स के अंदर का आर्ट, मेरी ड्राइंग क्लास की कम और इन सुपरविलेन और सुपरहीरो से भारी रहती थी.पागलपन का नशा यही नहीं ख़त्म हुआ.आगे चल के मैं कॉमिक्स के सेट, कौन सी कॉमिक्स में किस आर्टिस्ट, राइटर, एडिटर, कलरिस्ट का क्या योगदान है, कॉमिक्स सीरियल नंबर, कॉमिक्स ईयर और पता नहीं क्या क्या लिख के लम्बी चौड़ी "मोस्ट वांटेड" लिस्ट बनाने लगा.घर की ऐसी कोई कॉपी नहीं बची जहा मेरी कॉमिक्स से रिलेटेड आर्ट या कोई जानकारी ना लिखी हो.बहुत बार तो रुई की तरह धुनाई भी होती थी.पता चला पापा को बर्थ सर्टिफिकेट बना के देने है और पीछे "मा कसम", "योद्धा की चीख" लिखी हुई हो.पता चला भाई को होमवर्क जमा करना हो और कॉपी में आगे नगरस्सी पे झूलता "नागराज" बना हो.जैसे जैसे बड़ा होता गया मेरा जूनून और पागलपन जो कॉमिक्स को लेके था वो बढ़ता गया.मैंने देखा कि किराये पे कॉमिक्स लाने में समस्या ये है कि उसको वापस करना पड़ता है जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं था तो मुझे कॉमिक्स कलेक्शन का पागलपन चढ़ गया.एक पागलपन ये भी था के मै अपनी खरीदी कॉमिक्स किसी को जल्दी हाथ नहीं लगाने देता था.इसके पीछे मंशा थी कि मेरी कॉमिक्स नयी जैसी बनी रहे, हाँ दुसरो की कॉमिक्स चुराने में, या मांगने में मुझे शर्म नहीं आती थी.होता ये था के इतनी मेहनत से खरीदी, या जुगाड़ करके लायी गयी कॉमिक्स ज़ब लोग मोड़ देते थे तो मुझे देख के हल्क वाला दौरा पड़ जाता था.फिर चाहे सामने मेरे से 4 गुना मेरा मामा का लड़का हो या क्लास का दादा, मैं डोगा की तरह दौड़ा कर मारता था.लोग कॉमिक्स छुपा के पढ़ते है, मैंने कॉमिक्स के लिए चोरी, डकैती, बड़ी बड़ी लड़ाई, सब कुछ किया है.सबसे मज़ा तब आता था ज़ब पापा क्लास में अच्छे नंबर लाने की "अनोखी शर्त" पर कॉमिक्स लाया करते थे.सच में उसी लालच के चक्कर में 70 परसेंट के नीचे कभी नंबर नहीं आये.फिर गर्मी की छुट्टिया हो तो मज़े से तखत पे बैठ कर या उल्टा लेट कर हलुवा खाते हुए कॉमिक्स पढ़ो, कितना मज़ा आता था बयान नहीं कर सकता.एक बुरी चीज इसमें ये भी है कि ये कॉमिक्स वाला प्यार इतना बढ़ गया था कि कॉमिक्स खरीदने के लिए घर से चोरी तक करनी पड़ी.उस बात का आज तक अफ़सोस है.हाँ पागलपन इतना किया है कि 16 की एक कॉमिक्स लेने के लिए 2 दिन 4km पैदल स्कूल जाता था.भूखे पेट रहता था और घर में किसी को पता भी नहीं चलने दिया.बड़े होने पे सबसे बड़ी दिक्कत यही है के दिमाग़ ज्यादा खुरापाती हो कर "मास्टरमाइंड" जाता है.शायद इसी का नतीजा था कि कॉमिक्स लेने के लिए डेली नयी नयी खुरपेंची किया करता था.ऐसे ही एक छोटा सा "हातिमताई" वाला किस्सा भी बताना चाहूंगा.एग्जाम शुरू होने वाले थे और उनकी फीस 200 जमा करनी थी.2 दिन की "डेडलाइन" थी मेरे पास."मेरे पापा" ने पैसे दिए और दिमाग़ में आया कि लास्ट डे जमा कर दूंगा.उन पैसो की शॉप वाले के पास "मैक्सिमम  सिक्योरिटी" जमा करके कॉमिक्स ले आया किराये पे पढ़ने के लिए.क्लास में फीस मांगी गयी तो अगले दिन का बहाना बना कर टाल दिया.अब मुसीबत ये थी के अगले दिन तक वो सारी कॉमिक्स पढ़ के लौटानी थी और मेरे पास किराये के भी पैसे नहीं थे कॉमिक्स वाले को देने के लिए.तो दिमाग़  ये लगाया के उस रात बिना सोये "मोमबत्ती" की रौशनी में कॉमिक्स चाट डाली और उसकी 2 कॉमिक्स भी दबा ली.अगले दिन कॉमिक्स शॉप पे वापस करने पहुँच गया.वापस 200 मांगे के अब और कॉमिक्स नहीं पढ़नी, आपके पास और नहीं है मेरी वाली.तो वो किराया जो 20 होता था वो काट कर 180 वापस करने लगा.अब क्या करता?मेरे पास तो एक भी पैसा नहीं था.मैंने उससे झूठ बोल दिया के किराया कल आपके बेटे को पहले ही दे दिया था और दो कॉमिक्स भी उसी समय पढ़ के वापस कर दी थी.उसको शक हुआ तो उसने पढ़ी हुई कॉमिक्स का नाम पुछा.मैंने उसी दिन उसकी कॉमिक्स रखने के सीरियल को समझ कर कुछ ऊपर के नाम याद कर लिए थे जो किसमत से वही निकले.उसको लगा मैं सच बोल रहा हु तो उसने पूरे पैसे वापस कर दिए.तब जाके मैंने फीस जमा करि और मेरी जान में जान वापस आयी जैसे बांकेलाल की आती है हर कॉमिक्स में.हालांकि बाद में मुझे बुरा लगा लेकिन तब तो मैं कॉमिक्स के "अमर प्रेम" में था इसलिए खुद को माफ़ कर दिया.😄😄
लोगो का समय के साथ प्यार बदलता जाता है लेकिन मेरे केस में ये बढ़ता गया.एक दो गर्लफ्रेंड भी बनाई जिन्होने कुछ समय बाद मेरे कॉमिक्स प्रेम का सबके सामने मज़ाक बनाया और "मजबूर" होकर उन्होंने हीरे जैसा अपना बॉयफ्रंड खो दिया.कॉलेज के दोस्तों ने जो खुद को स्टाइलिश समझते थे, थोड़ा इंसल्ट भी किया, टीचरों और घर वालो ने जम के कूटा, सबकी हंसी का पात्र भी बना लेकिन ये कॉमिक्स की "प्रेम ऋतू"  का "खेल ख़त्म" नहीं हुआ.वीडियो गेम बने, कम्प्यूटर गेम्स आये, जमाना बढ़ता गया लेकिन अपनी पहली पसंद हमेशा कॉमिक्स रही.आज काफ़ी उम्र हो चुकी है."ये शादी होकर रहेगी" वाली दहलीज पे खड़ा हु लेकिन आज भी दिल बचपन वाला कॉमिक्स प्रेमी है जिसने तय किया है कि शादी भी उसी से करेगा जिसके पास उसके जैसा कॉमिक्स प्रेम वाला दिल होगा.महादेव की कृपा से कल जो भी हो लेकिन "सुपर इंडियन" की तरह एक कसम मैंने भी खायी है कि 80 साल का बुड्ढा भी हो जाऊंगा तब भी कॉमिक्स का नशा ख़त्म नहीं होने दूंगा.
बाकि कहानियाँ बहुत सी है लेकिन ज्यादा लम्बा लिखा तो लोगो के प्रोफेसर कमल कांत की तरह "कोमा" में जाने के आसार है इसलिए आज इतना ही.बाक़ी फिर "काली दुनिया " होने के बाद.....🙏😎

Thursday 9 July 2020

शक्ति और वंडर वोमेन -राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-8

सुबह-सुबह चंदा का शरीर कामने लगा और वो
शक्ति बनकर पहुंच गई बगल वाले गुप्ता जी के घर ।
गुप्ता जी और उनकी पत्नी की लड़ाई चल रही थी ।
शक्ति ने आव देखा ना ताव, दिया घुमा कर गुप्ता जी के
। गुप्ता जी बेहोश हो गए । मिसेज
गुप्ता को गुस्सा आ
गया।
मिसेन गुप्ता - ये क्या किया... अयन... तेरै बाल नोच
लू ?
गुप्ता जी की बेटी - मम्गी ! ये आप उसे बता रही हो या पूछ रही हो... खीच लो इसके बाल ।
मिसेज गुप्ता
और उनकी बेटी शक्ति के बाल खीचकर उसे पीटने लगी।
शक्ति - अरे.. स्को.... पर मे तो आपको बचा रही थी गुप्ता आंटी... आप मुझे ही क्यो मार
रही है ?
गिसेन गुप्ता - अभी मेरे इतने भी बुरे दिन नहीं आये है कि में गुप्ता जी से ही मिट जाऊ... वो
तो में पड़ोसियो को सुनाने के लिए और इनकी आवाज दबाने के लिए चिल्लाती हूँ। ये तो अब
मेरी रोज की थ्रिल बन गई है ।
शक्ति - अच्छा... अच्छा जा रही ह... हेयर क्लिप का क्या करोगी आंटी वो तो लोटा दो !
चंदा के दिन की बोहनी (शुरुआत) ही खराब हुई थी। पर एकदम तभी उसे कही से शक्ति
बनने की फिर पुकार आई। युवती समुन्द्र में डूब रही थी, शक्ति की गति इतनी तेज थी कि वो सगुन्द्र तल के अंदर ड्रिलिंग करती चली गई । जब उपर पहुंची तब तक कॉस्ट गार्स ने उस युवती को बचा लिया था । शक्ति के शरीर पर समुन्द्र के अंदर का गाढ़ा तेल चिपक चुका था।

शक्ति - शाबास... आप लोगो ने बहुत अच्छा काम किया जो इस युवती को बचा लिया ।
कॉस्ट गार्ड केडिट - पर तेरा सत्यानाश जाये काली माई...
शक्ति
पर मैने क्या किया ?
कोस्ट गार्ड केडिट वहा बार्डर के उस तरफ पकिस्तान के समुन्द्र क्षेत्र मे तुम कच्चे तेल की
खोज कर आई हों और उन्हें सब रेडीमेड मिल जायेगा! खुदाई भी नहीं करनी पड़ेगी ।
शक्ति वहा कैसे रुकती पर रास्ते मे ही उसे कहीं और से किसी नारी की पुकार आई... सहमी
हुई शक्ति एक मंदिर में पहुंची जहा एक मंडित जी अपनी पत्नी को बुरी तरह झंट रहे थे।
शक्ति - आंटी... ये क्या ये मंडित जी आपको पीड़ा पहुंचा रहे है ?
पंडिताईन जी - हा... जाउन रहे के मंदिर के चढ़ावे मे से दुई रुपिया लेय रहे... ई देख लेस
आउर डांट दिये रहें तबही तुम आयं गई रही ।
शक्ति - क्या आप चाहती है कि इन्हें सजा मिलें?
पंडिताईन जी - जबसे शॉदी हुई रही तबही से इनको मारने की सोचत रहिन ।
भीड़ जमा हो गई, मंडित जी ने मोंके की नजाकत को संभालते हुम दाँव बदला ।
पंडित जी - अरे... देख्यो... बलविंदर.. हुकुम... चप्पल पहिन के मंदिर में घुस आई रही (चंदा
आज जल्दीबाजी मे चप्पल उतारना भूल गई थी) और कारा-कारा कुछ रिसत है... हमका तो ई
चुडैल लागत है । मारो... मारो... हपक के दई दो ई का.... बाल नोच लो... पंडिताईन तुग का
ताइत हो तुहाऊ दो ईक घुमाय के...
शक्ति का आज दिन ही खराब चल रहा था... और उपर पक गुप्त स्थान पर वंडखूमेन प्रिंसपल
के साथ मिलकर शक्ति को निपटाने का प्लान बना रही थी।
प्रिंसपल
प्लॉन क्या है ?


वंडरखूमेन - देखो ... अपना टकला मत खुलाओ मे बता रही हूँ ... मेरी गुडियो की ब्रिगेड तैयार
है... प्लॉन सिंम्पल हैं ... देखते जाओ।
वंडखूमैन के एक इशारे पर उसकी "गुंडी ब्रिगेड की हजारो सदस्य आपस में लड़ने लगी और
इतनी सारी नारियो की चीख-पुकार सुनकर शक्ति के कई प्रतिस्प उन्हे मैनेज करने के लिंग
शक्ति से अलग हो गये।
प्रिंसपल - इससे क्या होगा ?
वंडखूमन - तुम्हे विलेन बनाया किसने ? ... टकले से हाथ दूर रखो । देखों शक्तिं हजारो
प्रतिस्पों में बट चुकी हैं अब मेरी गुडिया आपस में लड़ाई छोड़कर शक्ति के कमजोर प्रतिस्पों पर
टूट पड़ेंगी और इतने कमजोर स्पों को सुना देंगी । रुको मे सबको ईयरफोन पर गाइड कर लू
थोड़ी देर ।
प्रिंसपल - लेकिन ....
वंडरखूमैन - तुम्हे अपना टकला प्यारा नहीं है क्या ? ..
अच्छा अच्छा ने प्रेटिकल डेमोट्रेशन से समझाती हूँ।
वंडरखूमैन - जरा ... मुझे हलके से मारना
मेरे चीखने पर शक्ति का प्रतिस्प जरूर आयेंगा।
अपने टकले पर वंडखूमैन की टिप्पड़ियो से नाराज प्रिंसपल ने बड़ी जोर से पक गुक्का मारा
वंडखून के सर पर और वंडखूमेंन का विंग उतर गया ।
प्रिंसपल - ओह ... तो ये है सच्चाई...
आययय
वंडखूमन - इसपर हम बाद में बात करेंगे ... देखो शक्ति का प्रतिस्प आ गया
फूउउउह
...
शक्ति का प्रतिस्प बंडखूमैन की फूंक से ही उड़ गया ।
वंडखूमेन - देखा... टक... ओह... मारती रहो मेरी गुडियो... बाल खीच-खीच कर इसे भी
टकला बना दो।



प्रिंसमल - जानती हो वंडरवूगन ... गै आज तक कुबारा क्यों हूँ ?
वंडखूगन - क्यो... हो ?
प्रिंसमल - वयोकि कोई गंजी गिली ही नही.. और गिली भी तो गेरे विचारों से उसके विचार
বहीं गिले... आई लव यू... वंडरवूमैन ।
वंडरवूमन - ये बात तो मैं भी तुमसे कहना चाहती हूं.. आई लब यू 2 प्रिंसमल ।


शक्ति के प्रतिरूपों का पिटना जारी था ।

घोंचू-राज कॉमिक्स की कॉमेडी कहानी-6

शीर्षक - घोंचू
एक दिन सुबह सुबह गुरुदेव ने लतिया के नागपाशा को नींद से जगाया। 

गुरुदेव - अरे उठ। कब तक सोएगा ?

नागपाशा - लाकडाउन है गुरुदेव। उठ के भी क्या करूंगा। 

गुरुदेव - जो त्रिफना तुझसे नागराज ने छीन ली थी, वो वापस लाएंगे। 

त्रिफना की बात सुनते ही नागपाशा उछल के खड़ा हो गया। और ऐसा होते ही उसकी इकलौती गमछी जो वो हमेशा पहने रहता है, सरक के नीचे आ गयी। 

गुरुदेव (अपनी आंख बंद करते हुए) - छी। जल्दी से गमछा लपेट।

नागपाशा - सॉरी गुरुदेव, वो गलती से गलती हो गयी। 

चटाक।चटाक।चटाक।

जैसे ही नागपाशा ने अपना गमछा टाइट किया वैसे ही गुरुदेव में उसे एक जोर का तमाचा मारा - नामुराद। अगली बार तेरा गमछा सरका, तो सच कहता हूं, मार मार के तेरा तेरा गमछा फाड़ दूंगा। अब चल।

नागपाशा - कहां गुरुदेव। 

गुरुदेव - अतीत में।

नागपाशा - अतीत में तो ध्रुव था ना। अपना दुश्मन तो नागराज है। फिर आप उस पीले फफूंदी के पीछे क्यों पड़े हो ?

चटाक। गुरुदेव ने एक और चपेट धर दी उसे।

गुरुदेव - अरे गधे। कॉमिक्स अतीत में नहीं। असली के अतीत में। 50000 साल पीछे।

नागपाशा - इतना पीछे क्यों ? त्रिफना तो नागराज के पास होगा न?

गुरुदेव - पता नहीं।

नागपाशा - जब पता नही तो अतीत में क्यों जा रहे हो गुरुदेव ?

चटाक ।

गुरुदेव - नालायक। त्रिफना अतीत में पहली बार जिस मानव के हाथ लगी थी, हम उसके पास जा रहे है। वो एक आम मानव है। उससे त्रिफना छीनना आसान होगा।

नागपाशा - ओ ऐसा है तो सीधे सीधे बता देते ना आप। बेकार में मैंने आपसे इतना सवाल किया। 

गुरुदेव ने परेशान होकर अपना सर पकड़ लिया।

नागपाशा - सर मत पकड़ो गुरुदेव। अब चेला मुझ जैसे बैल दिमाग को बनाया है तो भुगतना तो तुम्हें ही पड़ेगा। वैसे हम अतीत में जाएंगे कैसे?

गुरुदेव - एक चुम्बकीय यंत्र से। 

नागपाशा - कैसे।

गुरुदेव - मैंने इस यंत्र को त्रिफना की शक्ति से बनाया था। इसलिए कि कभी त्रिफना हमसे चोरी हो जाये या कोई उसे हमसे छीन ले तो बाद में हम इस यंत्र की सहायता से सीधे त्रिफना के पास पहुंच जाए।

नागपाशा - ओ ओ ओ ओ। पर गुरुदेव ऐसा है तो हमे अतीत में जाने की क्या जरूरत है?  वर्तमान वाली त्रिफना जहां है वही से इस यंत्र की सहायता से जाकर उसे ले आते है।

चटाक।

गुरुदेव - अरे नालायक। वर्तमान में उसकी सुरक्षा पता नही कैसे कैसे शक्तिशाली नाग कर रहे होंगे, और अतीत में वो एक आम मानव के पास है, तो अतीत में जाना ज्यादा सही होगा न घोंचू ।

नागपाशा - बात तो सही कही आपने गुरुदेव। पर हमरा एक ठु सवाल है।

गुरुदेव - पूछ।

नागपाशा - जब आप ऐसा यंत्र बना सकते थे जिसकी मदद से हम चुम्बक की तरह खींच कर त्रिफना के पास पहुँच सकते है, तो अपने ऐसा यंत्र क्यों नही बनाया जिससे कि वो त्रिफना चुम्बक की तरह खिंच कर अपने आप हमारे पास आ जाये।

गुरुदेव चुप। उन्हें एकदम से सांप सूंघ गया था।

नागपाशा - खिखिखि। हमेशा मुझे घोंचू कहते हो आप, लेकिन जो घोंचूपना आपने किया उससे आज साबित हो गया कि आपसे बड़ा घोंचू इस दुनिया मे और कोई नहीं।

हिहिहि। समाप्त। क्रमशःहिहिहि। समाप्त। क्रमशःहिहिहि। समाप्त। क्रमशः

शीर्षक - दिमागदार नागपाशा

गुरुदेव को मूर्ख बनाने के बाद नागपाशा जमीन पे लोट-पोट होके हँसने लगा। 
पहले से ही शर्मिंदा गुरुदेव जमीन पर नागपाशा को लुघड़ते देख भड़क उठा। 

और इतिहास गवाह है कि कोई गुरु जब अपने चेले पर भड़कता है तो उसकी ऐसी धुनाई होती है, ऐसी धुनाई होती है, जिसके बाद उस चेले के मुहँ से दोबारा एक चु तक नही निकलती।

अब भड़का हुआ गुरुदेव जमीन पे लुघड़ते नागपाशा को बुरी तरह लतियाने लगा। 

धाड़, धाड़, धाड़ !!!

नागपाशा जोर से चींखा - आहहहह। गुरुदेव क्षमा। माफी, सॉरी, क्षमा दई दो गुरूदेव। मैं अमर भले हू लेकिन दर्द मुझे भी होता है। आह, ऊई, पुई।

गुरुदेव - नामुराद, आगे से कभी मेरा मजाक उड़ाया तो सोच लेना, तेरी इतनी ठुकाई करूँगा की अजीवन तू ठीक से सोफे पर भी बैठ नही पायेगा।

नागपाशा - कसम खाता हूं गुरुदेव आज के बाद मैं आपको कभी घोंचू नहीं कहूंगा। आपने कोई घोंचूपना नहीं किया है, और आप कोई घोंचू भी नहीं है। 

चटाक !

नागपाशा - आह, अब क्यों मारा गुरुदेव ?

गुरुदेव - घोंचू ना बोलने का बोल के दो बार घोंचू बोल दिया तूने मुझे इसलिए। 

चटाक !

नागपाशा ने भी एक जोर का लाफा गुरुदेव को लगाया।

चटाक चटाक चटाक। 

गुरुदेव गुस्से में नागपाशा को तीन चार चाटें मारते हुए - नामुराद। मुझ पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे हुई तेरी।
नागपाशा - सॉरी गुरुदेव। वो मैंने आपको।घोंचू ना बोलने का कह कर दो बार घोंचू बोला तो आप मुझे दो लपेड़ मार दिए। लेकिन फिर मुझे समझाने के लिए आपने भी खुद को दो बार घोंचू कहा। अब आप खुद को तो लपड़िया नहीं सकते थे। इसलिए मैंने ही मौके का फायदा उठाया और आपको दिया धर के एक। खिखिखि।

चटाक !

गुरुदेव ने फिर से नागपाशा को एक रापटा दिया - औकात में रह पाशा, अगली बार मेरे सामने होशियारी दिखाई तो तेरे इकलौते वस्त्र में घुजली का पाउडर डाल दूंगा। उसके बाद तेरा क्या होगा, शैतान ही जाने।

नागपाशा - नाराजगी छोड़ो गुरुदेव। अब चलो अतीत में। त्रिफना लाएंगे, उसके बाद मैं फिर से नागराज को बूढ़ा बनाऊंगा।

गुरुदेव - एक बार बूढ़ा बनाया था न तूने उसे। क्या तब कोई फायदा हुआ था?

नागपाशा - पूरी बात तो सुनो गुरुदेव। इस बार नागराज को जुलजुल बूढ़ा बना दूंगा, इतना बूढ़ा की बेचारा बैसाखी के सहारे भी चल ना पाये, और उसे किसी अनजान आयाम के निर्जन द्वीप पे ला पटकूँगा। 

गुरुदेव - उससे क्या होगा। 

नागपाशा - अबकी बार बीच मे बोला तुमने गुरुदेव तो कसम है मुझे मेरे गमछे की, आपकी एकलौती मैक्सी मैंने फाड़ ना डाली तो मेरा नाम नागपाशा नही।

गुरुदेव (अपनी मैक्सी कस के पकड़ते हुए) - माफ कर दे यार , अब बीच मे नहीं बोलूंगा। बोल बोल, अपना प्लान बक।

नागपाशा - उस निर्जन द्वीप पे एक कन्या भी होगी। नागराज की प्रेमिका नागिन। राजकुमारी विशर्पि। एकदम जवान रूप में। हिहिहि।

गुरुदेव - वाह चेले। तू तो दिमाग चलाना सीख गया।

नागपाशा - हिहिहि। नागराज का दिल जलता रहेगा। बेचारा विशर्पि की जवानी को देख तड़पता रहेगा और एक दिन खुद ही आत्महत्या कर लेगा। हिहिहि।

गुरुदेव - शाबाश। नागराज पे होगा इससे इमोशनल अत्याचार। विशर्पि की जवानी का मारा, नागराज बूढ़ा बेचारा। 

नागपाशा - तो चलो गुरुदेव।

गुरुदेव - जरूर। मेरा हाथ पकड़। जैसे ही मैं अपने यंत्र का प्रयोग करूंगा वैसे ही हम अतीत में खींचते चले जायेंगे। 

नागपाशा - जो आज्ञा घोंचूदेव ..... सॉरी-सॉरी, मेरा मतलब गुरुदेव। खिखिखि।

गुरुदेव - बेटा पहले त्रिफना ले आते है। फिर देख मैं तेरी कैसी धुनाई करता हूँ।

क्रमशः ....