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Friday 18 March 2022

जितेश तलवानी की कलम से

 साल:2022

समय: रात के करीब 8 बज रहे हैं

स्थान: दिल्ली एयरपोर्ट

एक आदमी अपनी इंग्लैंड जाने वाली फ्लाइट के लिए चेक-इन और इमिग्रेशन आदि की औपचारिकताओं से फारिग हो चुका है और उसके पास लगभग 20-25 मिनट का समय है फ़्लाइट बोर्ड करने के लिए...

वो सोचता है कि सफ़र के लिए कोई किताब ले ली जाए और वो एयरपोर्ट के बुक स्टोर में चला जाता है। वहां उसको भिन्न-2 प्रकार की किताबें दिखती हैं लेकिन उसका मन किसी भी किताब को लेने के लिए बन नहीं पा रहा। वक़्त गुज़रता जा रहा है, सफ़र लम्बा है और उसको अब एक किताब बहुत ही जल्द चुननी ही होगी, अगर पूरे रास्ते बोर नहीं होना। वो सोच ही रहा था कि अचानक उसकी नजर एक शेल्फ पर पड़ी.. पहले तो उसको अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ लेकिन जब उसने करीब जाके देखा तो उसका दिल कुलांचे मार उठा! ये... ये तो कॉमिक्स है.. अरे वाह.. वही कॉमिक्स जिसे पढ़कर उसका बचपन गुज़रा.. बचपन में जिसे खरीदे बिना वो ट्रेन में नहीं चढ़ता था और पूरे सफ़र में उस एक कॉमिक्स को ना जाने कितनी बार पढ़ता था जब तक वो सारे चित्र उसकी आँखों के जरिए दिल तक ना उतर जायें... चाचा चौधरी, नागराज, ध्रुव, बिल्लू, पिंकी, राम रहीम... इन सब की कई पढ़ी हुई कॉमिक्स की याद अब तक उसके ज़हन में थी।

उसने देखा कि उस कॉमिक्स का नाम था शक्तिरुपा, सुपर कमांडो ध्रुव की थी वो कॉमिक्स... उस आदमी ने कुछ पन्ने पलटे और ऐसा लगा कि जैसे गुज़रा वक़्त वापिस आ गया है क्यूंकि स्कूल के बाद कॉमिक्स से उसका नाता टूट गया था और उसको तो यही लगता था कि शायद अब कॉमिक्स आना ही बंद हो गयी क्यूंकि अब वो दिखती नहीं थी उसको कहीं... लेकिन आज ये कॉमिक्स हाथ में लेकर उसकी खुशी का ठिकाना ना था। उसने इस नयी कॉमिक्स को ही खरीदने का निश्चय किया, पेज भी अच्छे खासे थे तो उसका सफ़र आराम से कट जाता। कॉमिक्स लेकर जब वो बिलिंग काउन्टर पर पहुंचा तो कॉमिक्स की कीमत सुनकर ही उसको एक जोर का झटका लगा... 1100 रुपयों की कॉमिक्स? इतनी महँगी? उसको तो कोहराम कॉमिक्स की कीमत याद थी 40 रुपये, जिनको इकट्ठा करने के लिए उसने एक हफ्ता स्कूल में कुछ नहीं खाया था और अपना पेट काटकर उन बचाए हुए पैसों से वो कॉमिक्स खरीदी थी और जब घर पर पता चला कि 40 रुपये की कॉमिक्स खरीदी है तो खूब डांट भी पड़ी थी.. ये शक्तिरूपा कॉमिक्स उससे दुगनी मोटी लग रही थी, लेकिन कीमत में कई गुना ज़्यादा थी!

खैर, अब ज़िन्दगी में एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया था कि कुछ खरीदते हुए कम से कम रुपये-पैसे की तो दिक्कत नहीं थी, इसलिए उस आदमी ने शक्तिरूपा खरीद ली और अपने बैग में डाल ली और फ्लाइट बोर्ड करने चल दिया।

बोर्डिंग समयानुसार हुई और उड़ान भी समय पर थी... फ्लाइट टेक ऑफ हुई और विमान हवा में उड़ चला हीथ्रो एयरपोर्ट की तरफ...

आदमी ने कमर की पेटी खोली और बड़े ही इत्मिनान से अपने बैग से कॉमिक्स निकालकर पढ़ना शुरू कर दिया। उसको बहुत मज़ा आ रहा था, हालांकि उसको ये भी लग रहा था कि कई चीजें हैं कहानी में, जो उन कॉमिक्सों से सम्बन्धित हैं, जो उसको पता भी नहीं थी कि आयी हैं... फ्लाइट और कहानी काफी तेजी से बढ़ रहे थे हालांकि उस आदमी को हिन्दी पढ़ने में थोड़ी असुविधा हो रही थी क्यूंकि कई सालों से उसने हिन्दी में कुछ भी नहीं पढ़ा था लेकिन वो एक चीज़ समझ पा रहा था कि इस कॉमिक्स की हिन्दी का स्तर उतना उच्च नहीं था जितना उसके बचपन में पढ़ी हुई कॉमिक्स में होता था।

खैर, उसने देखा कि कहानी पार्ट्स में है और वो एक पार्ट खत्म करके दूसरा पार्ट पढ़ रहा था... अब जैसे ही उसने दूसरा पार्ट खत्म करके तीसरा पार्ट शुरू करने के लिए पन्ना पलटा, उसको समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ है.. किधर गए रंग? उसको लगा शायद इस पेज में कोई तकनीकी दिक्कत हुई होगी तो रंग नहीं भरा गया होगा, इसलिए उसने आगे के पन्ने पलटे.. लेकिन वो आगे के पन्ने भी बेरंग निकले... वो आदमी एकदम हैरान परेशान हक्का-बक्का सा रह गया... उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कहानी के तीसरे हिस्से में रंग क्यूँ नहीं हैं? कहीं उसके हिस्से में डिफेक्टिव कॉमिक्स तो नहीं आ गयी? ऐसा कैसे हो सकता है..? अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया, कहीं ये तीसरा पार्ट 3-D कॉमिक्स तो नहीं है, जिसको 3-D चश्मा लगाकर पढ़ना पड़ता हो, जैसे उसने बचपन में जंगल की रानी नाम की कॉमिक्स पढ़ी थी?शायद तभी कॉमिक्स इतनी महँगी थी, लेकिन फिर बुक स्टोर वाले ने उसको वो 3-D चश्मा दिया क्यूँ नहीं? उसने कॉमिक्स के कवर को ध्यान से देखा कि शायद कहीं 3-D चश्मे के बारे में लिखा हो लेकिन ऐसा भी नहीं था!

सवाल कई थे, लेकिन जवाब एक भी नहीं.. और फ्लाइट में उसके पास इसके बारे में पता लगाने का कोई साधन भी नहीं था....

लन्दन करीब आ रहा था, लेकिन कॉमिक्स की कहानी अब कहीं पीछे छूट चुकी थी और अब दिमाग में थे तो बस सवाल.....

#ShaktiRoopa

#KuchBhi