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Tuesday 28 July 2020

दीपक वर्मा की कलम से

मेरा कॉमिक्स सफर: कुछ चुलबुली यादें

आज बहुत दिन के बाद कुछ लिख रहा हूँ। 

लगभग 3-4 साल का रहा होऊंगा जब मैंने कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया । मैं उन कुछ खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्होंने कॉमिक्स से ही पढ़ना सीखा । 

पापा एक कॉमिक्स लेकर आये थे "चाचा चौधरी और राका" । उसके चित्र देखकर मैं बड़ा आकर्षित हुआ था। फिर उसी से जैसे छोटे बच्चों को एक एक अक्षर मिलवा कर एक शब्द पढ़ना सिखाया जाता है मैंने वैसे कॉमिक्स पढ़नी सीखी और फिर चाव चाव में कई सारी पढ़ डालीं । इससे हुआ ये कि मुझे अपनी स्कूल की हिंदी की किताबों में से (उस समय बाल भारती चला करती थी) बिना एक-एक अक्षर मिलाये पूरा पूरा शब्द ही पढ़ने की "अद्भुत मायावी" शक्ति प्राप्त हुई । 

फिर तो पढ़ने का ऐसा शौक लगा कि क्या बताऊँ।
ऐसी उत्कंठा होती कि बस अगली कक्षा में आते ही नए पाठ्यक्रम की बाल भारती पढ़ने को मिल जाये । जैसे ही हत्थे चढ़ती पूरी पढ़ डालता ।

जानता हूँ कि पोस्ट थोड़ी लम्बी हो रही है पर आप धैर्य बनाए रखें । 😁

थोड़ा बड़ा हुआ तो पता लगा कि कॉमिक्स किराए पर भी मिलती हैं । बस मम्मी से जिद करके कॉमिक्स किराए पर ले आता और पढ़ता । एक बार यही पापा को पता लगा तो उन्होंने खूब डांटा पर ये सिलसिला रुका नहीं ।

धीरे धीरे डायमंड कॉमिक्स से राज कॉमिक्स पर आया । 

उस समय एक विज्ञापन देखा था नागराज की किसी कॉमिक्स का । बस उसे पढ़ने की इच्छा बलवती हो उठी ।
फिर क्या था मम्मी को मक्खन लगाने का सिलसिला शुरू हुआ, मक्खन काम करने लगा था लेकिन वह मक्खन कब चूने में परिवर्तित हो गया, पता भी ना चला। 
शीघ्र ही चाचा जी के कंप्यूटर से भी तेज दिमाग की तरह यह चूना लगाने की प्रक्रिया तेज़ होती गयी और अंततः सफलता प्राप्त हुई । 

पहली कॉमिक्स पढ़ी "नागराज" । 
बहुत पसंद आई !
फिर तो बस अधिकतर नागराज की ही कॉमिक्सें पढ़ने लग गया । 

फिर किसी दिन दुकान पर सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्सें दिखीं ।
एक ले आया । 
कॉमिक्स थी "रोमन हत्यारा" । 
फिर मैंने नागराज और ध्रुव, दोनों ही चरित्रों को पढ़ना शुरू कर दिया।

आशा है कि आप बोर हो रहे होंगे और मुँह फाड़ के उबासी ले रहे होंगे । 😄

एक वाक़या जरूर बताना चाहूंगा । 
एक बार ध्रुव की एक कॉमिक्स का विज्ञापन देखा । 
कॉमिक्स थी "आत्मा के चोर" । 
मैंने सोचा कि ध्रुव की आत्मा ही अगर अलग हो गयी तो वो तो मर जायेगा । 
क्या हुआ होगा उसे? आदि आदि!

बस फिर तो उस कॉमिक्स को पागलों की तरह ढूंढना शुरू किया । कॉमिक्स की दुकान वाले भैया भी उकता गए थे कि ये तो रोज़ ही पूछने आ जाता है (जैसे आप लोग मेरी पोस्ट पढ़ पढ़ के उकता गए हो... तो नोंच लो बाल ! 😆 )

इतनी ज्यादा बार दुकान पर पता करने गया कि कई बार तो कॉमिक्स की दुकान के बगल वाली दुकान से दूध ब्रेड भी लेने जाता तो कॉमिक्स वाले भैया दूर से ही कहते "नहीं आयी अभी" !

खैर! किस्से तो बहुत हैं जैसे किताबों के बीच कॉमिक्स छुपाना, पिटने से बचने के लिए दोस्त के बैग में रखना, इत्यादि । फिर किसी दिन बताऊंगा, वरना आप लोग गालियां दोगे (दे दो, क्या उखाड़ लोगे! 😆 )

तो इसी के साथ इस पोस्ट का समापन करता हूँ। 
भई! अपने अपने काम-धंधे देखो, मेरा तो ये रोज़ का नाटक है ! 😂