एक दिन डोगा अपराधियों की चटनी बना रहा था ।
लेखक ( खुद से ) - चटनी तो अडिग बनाता है । ठीक से लिख धोन्धे । बोका कही का ।
एक दिन डोगा अपराधियों से भिड़ा हुआ था । एक रहस्यमयी शख्स का अपहरण कुछ चिन्दी टपोरियों ने कर लिया जिसे बचाने डोगा आया था ।
इतना बम मारेंगे , इतना बम मारेंगे वाली संवाद के तर्ज पे डोगा ने चिन्दी अपराधियो के अड्डे को धुवां धुवां कर दिया ओर अपहृत को बचा के एक कंटेनर के पीछे छिप गया ।
डोगा ( परेशानी में ) - ज्यादा जोश में आके सभये बम फोड़ दिया मैंने । अब का करू ।
तभी डोगा का ध्यान खुद को घूरते हुए उस अपहृत शख्स पर गया ।
डोगा - घूर क्या रहा है झंडू । कौन है तू ?
अपहृत - हमार नाम बोकाबाड़े है ।
डोगा - बोकाबाड़े । ये कैसा नाम है ।
बोकाबाड़े - पहले बचा लियो तब पता चल जाएगा ।
उधर से चिन्दी टपोरी लोग डोगा के डर में लगातार कंटेनर के पास बम गोली बारूद मार मार के सब धुवा धुवां कर रहे थे ।
डोगा ( गुस्से में ) - इनकी तो । डर मत डोगा । हम किसी से कम नही.....
बोकाबाड़े ( जोर से ) - डोगा के पास बम नही ....
इत्ता सुनते ही सब अपराधी तेजी से डोगा की तरफ बैट , हॉकी , बेस बैट , मोटी लोहे की चेन लेके बढ़ने लगे ।
डोगा ( बोकाबाड़े का गला पकड़ते हुए ) - उन्हें क्यों बताया की मेरे पास बम नही । बोका हो का ।
बोकाबाड़े - हमारा तो नाम से पता चल जाये कि हम बोका है । जो ना समझे उ भी बोका होई जाए ।
डोगा ( गुर्ररर ) - आज मेरे डॉगीज ने पिस्टल तो दिया पर गोली देना भूल गए । अपनी तो लग गयी है । खैर कोई बात नही । गिने चुने अपराधी है ये , नौसिखिए भी लगते है , ऊपर से गिनती में कम ....
बोकाबाड़े ( चिल्ला के ) - डोगा की गोली खत्म.......
गोली खत्म सुनते ही सब चिन्दी टपोरी दौड़ पड़े डोगा को लतियाने ।
बोकाबाड़े को बचाने से पहले अब डोगा को खुद को बचाना था । गुस्सा तो बड़ा आया उसे लेकिन बोके को बचाने के चक्कर मे उसकी लग ना जाये इसीलिए हर बार की तरह कमरे में गटर का ढक्कन ढूंढ के वो उसमें कूद के भाग गया ।
लेखक ( फिर से खुद से ) - ये डोगा को हर बुरी स्तिथि में गटर कहा से दिख जाता है ?
समाप्त ।