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Wednesday, 28 October 2020

कॉमिक्स प्रंशसको की कलम से लेख

 संसार में सुख के सत्य की तलाश में सिकंदर ने ज़मीन नाप दी, बुद्ध ने गृह त्याग दिया. सुख पर लिखी किताबें बेस्टसेलर बन गयी और सुख पाने के चक्कर में जाने कितने घनचक्कर मारे - मारे फिरते हैं. सुख कमबख्त है कि मुहल्ले की सामूहिक महबूबा बना हुआ है, जो क्षण भर को छत पर कपड़े सुखाने के लिये आये और उस क्षण के इंतज़ार में मुहल्ले का लौण्डागण दिन भर धूप में विद्यमान विटामिन डी सोख सोख कर टैन होते चला जाये.

तो मालिकों सुख की तलाश में बियाबान-रेगिस्तान भटक चुकने के बाद अचानक रेल्वे स्टेशन पर एक कॉमिक पा कर खुशी से झूम जाने वाले उस बालक की याद आयी जो कभी हम स्वयं हुआ करते थे. 

एक आठ रुपये की अदद कॉमिक पा कर कारूँ का खज़ानावाली जो फील आती थी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता. चिथड़ों में व्याप्त कॉमिक कम दामों में खरीद कर उसे किसी पुरातत्त्ववेत्ता वाली कुशलता से कभी सी कर, कभी स्टेप्लर मार कर पुनर्जीवित करने के सुख को भुला कर हम दुनिया के मायाजाल में ऐसे रमे कि भूल गये बण्डल बण्डल कॉमिक खरीद कर अलमारी सजा लेना सुख नहीं... सुख उन्हें बिखेर के फिर पढ़ने में है. फिर उन फटे कवर वाली कॉमिक्सों को देख कर याद करने में है कि इन्होंने हमारा कितना जीवन कैसे स्पेशल बनाया है इसलिये आज भी कॉमिक्स पढ़ना सच्चा सुख लगता है -

Wednesday, 14 October 2020

कॉमिक्स की दुनिया में जोड़ियों की सफलता का अध्य्यन

आपने काफी कॉमिक्स पब्लिकेशन में जोड़ियों का नाम तो सुना ही  होगा,जिनमे राम-रहीम , अग्निपुत्र - अभय,मोटू-पतलू, लम्बू-मोटू ,छोटू - लम्बू,मोटू - छोटू,अंडेराम - डंडेराम,आल्तुराम - फाल्तुराम,मंगलू मदारी - बंदर बिहारी,मामा - भांजा,राजन - इकबाल,चाचा -भतीजा ,क्रुक बांड -मोटू ,नागराज -सुपर कमांडो  ध्रुव ,ताऊजी-रुमझुम,कोबी - भेड़िया,फाइटर टोड्स,हंटर शार्क फोर्स,अमर - अकबर,अकडू जी - झगडू जी,अकडू जी - झगडू जी,अमर - रहीम - टिंगू,मशीनी लाल - अफीमी लाल,मनकू - झनकू, सागर - सलीम, विनोद - हामिद ,राम - बलराम,राजा - जानी,विनोद - हनीफ,शंकर -अली  आदि। 


या यु कहिए कि हर एक कॉमिक्स करैक्टर के साथ उसका सहायक रहता था,जो हीरो के बराबर या कम  होता था,जब कही हीरो फस जाता था तो उसका सहायक ही उसको वहां से निकालने  में मदद करता था.

Sunday, 11 October 2020

कॉमिक्स_वाले_अंकल

 #कॉमिक्स_वाले_अंकल 


वो हमारे कॉमिक्स वाले अंकल थे। नाम तो उनका कभी पूछा नहीं। ये भी पता नहीं हिन्दू थे, मुसलमान थे या किस जाति से थे। ये सब बातें हमारे लिए बेमतलब बेमानी थीं। हम बच्चों को बस इतना ही पता था कि गली में उनकी छोटी सी दुकान थी। यूं दुकान तो किरयाने की थी, पर उसी के एक कोने में ढेर सारी कॉमिक्स भी रखी रहती थीं, और यही बात उनकी उस छोटी पुरानी सी दुकान को खास बनाती थी। 

जब मम्मी पैसे देकर घर का कुछ सामान लाने को भेजती तो हम दूसरी बड़ी दुकानों को छोड़कर कॉमिक्स वाले अंकल की छोटी सी दुकान में घुस जाते। जब तक अंकल सामान तौलते तब तक हम कॉमिक्स उलट पलट कर देखते रहते। जाने कैसी खुशी मिलती थी वहां। 

अंकल की दुकान पर ग्राहक कम ही होते थे। सब कहते थे उस पुरानी दुकान में कुछ घुटन सी रहती है। पता नही क्यों हमें वो घुटन कभी महसूस ही नहीं हुई। कभी जेबखर्च को कुछ पैसे मिलते तो लेकर हम सीधा अंकल की दुकान पर पहुंच जाते। उस वक्त वो 50 पैसे में कॉमिक्स किराये पर दिया करते थे। घर ले जाकर पढ़ने का एक रुपया लगता था। हम कम पैसो में ज़्यादा कॉमिक्स पढ़ने के लालच में वहीं बैठकर घण्टों कॉमिक्स पढ़ते रहते थे। वहीं बैठकर पढ़ने पर अंकल भी खुश रहते थे। शायद इससे उन्हें अकेलापन नहीं लगता था। गली की उस छोटी सी पुरानी दुकान में एक अलग ही किस्म का सुकून था।

वक्त बीत गया। हम बच्चे से बड़े हो गए। पुराना शहर भी छूट गया। कॉमिक्स का शौंक कुछ सालों के लिए पूरी तरह छूट कर फिर दोबारा भी शुरू हो गया। पर ज़िन्दगी की भागमभाग में उन सब यादों पर जैसे धूल की परत सी जम गई थी। 

फिर अभी 2 साल पहले किसी काम से पुराने शहर जाना हुआ। तब फिरसे कॉमिक्स वाले अंकल और उनकी दुकान की याद आई। मन में वही पुरानी उमंगें लिए गली की उस सबसे पुरानी दुकान पर पहुंचा।

अंकल अब नहीं रहे। दुकान आंटी और उनका लड़का मिलकर सम्भालते हैं। एक कोने में कुछेक कॉमिक्स भी पडी धूल खा रही हैं। पर वो पहले जैसा सुकून नहीं है। मैं ज़्यादा देर दुकान में खड़ा नहीं रह सका। उस छोटी, पुरानी दुकान की घुटन अब महसूस होने लगी है।


नोट: तस्वीर केवल प्रतीकात्मक मात्र है।

डोगा ही है रियल हीरो....

 डोगा ही है रियल हीरो....

आज की ये पोस्ट ये बताने के लिए है कि डोगा रियल हीरो क्यों है? नागराज और ध्रुव बहुत लोकप्रिय पात्र हैं लेकिन मुझे उनसे ज़्यादा डोगा पसन्द है। इसकी वजह है डोगा की कॉमिक्स की रियल स्टोरीज़। 


अगर डोगा की स्टोरीज़ को नागराज और ध्रुव की कॉमिक्स से कम्पेयर करेंगे तो पता चलेगा कि डोगा की कॉमिक्स वास्तविकता के कितने करीब होती हैं। जो समस्याएं हम अक्सर न्यूज़ में या अखबारों में पढ़ते हैं, डोगा ऐसी ही समस्याओं को जड़ से उखाड़ता दिखाई देता है।


आप सब कॉमिक प्रेमियों को याद होगा कि जब नागराज शाकूरा  के चक्रव्यूह में फंसा, नागपाशा द्वारा दिखाए गए सपनों के मंदिर का पीछा कर रहा था और ध्रुव सर्कस में स्टार फिश की मानसिक शक्तियों का सामना कर रहा था ...

तब डोगा बस में लगे स्पीड बम से 40 जिंदिगियों को बचाने की ज़बरदस्त जद्दोजहद कर रहा था।

जब नागराज और ध्रुव परग्रहीयों के हमले से राजनगर की तबाही होने से रोक रहे थे....

तब डोगा सिंथेटिक दूध बनाने वाली फैक्ट्री को नेस्तनाबूद कर रहा था। (कायर, हाथ और हथियार)

जब नागराज और ध्रुव विषाला की प्रलय से दुनिया को बचा रहे थे...

तब डोगा एग्जाम का पेपर लीक करने वाले शोला गैंग को सबक सिखा रहा था। (मारा गया डोगा, मरेंगे डोगा के दुश्मन)

जब नागराज और ध्रुव कल्कि अवतार और मसीहा को दुनिया में विनाश फैलाने से रोक रहे थे...

तब डोगा भिखारियों को मौत के घाट उतारने वाले हत्यारे के लिए मृत्युदाता बना हुआ था और दलित नेता का अपमान करने के इल्जाम से खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था। (डोगा को गाड़ो)

जब नागराज और ध्रुव देवताओं की मदद कर रहे थे जिससे दुनिया में हमेशा के लिए कलियुग व्याप्त न हो...

तब डोगा करवाचौथ सुहागनों पर मंडराता खून का खतरा खत्म कर रहा था।


इसके अलावा भी...

कभी डोगा नवजात बच्ची को कार के टायर से कुचलने वाले गोलू को चार किलोमीटर आगे जाकर सज़ा दे रहा था।

तो कभी डोगा रक्तदान करके हिन्दू मुस्लिम फसाद को खत्म करने की कोशिश में लगा था। (डोगा हिन्दू है सीरीज़)

कभी डोगा बूढ़े लोगों पर खतरा बने युवा को खत्म कर रहा था। (वृद्ध वॉरियर सीरीज़)

और कभी डोगा करोड़ो की संपत्ति के मालिक 18 वर्षीय कुमार सक्षम की अंडरवर्ल्ड से हिफाज़त कर रहा था। 

अब आपको पता चल ही गया होगा कि डोगा क्यों है रियल हीरो क्योंकि "*डोगा है ही ऐसी चीज़*"।

एक बहस जिसका ना कोई आधार ना कोई अन्त....

 एक बहस जिसका ना कोई आधार ना कोई अन्त....


ध्रुव चंडिका को क्यों नहीं पहचान पाता?...

सभी अपने अपने तर्क देते हैं. विपक्ष वाले कहते हैं ध्रव इतनी सी बात नहीं जान सकता.. बस आंखों को कवर करने से वो चेहरा नहीं पहचान पाता, आवाज नहीं पहचान पाता और उसके दिमाग पर सवालिया निशान लगाते हैं....पक्ष वाले कहते हैं चंडिका आवाज बदल लेती होगी, चेहरे में कुछ बदलाव कर लेती होगी, अपनी गंध छुपाने के लिये कोई यंत्र प्रयोग करती होगी इत्यादि...

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मैं कहता हूं ये सवाल है ही क्यों?

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भले ही‌ श्वेता डरपोक और चंडिका बहादुर, भले ही चंडिका कोई यंत्र प्रयोग करती हो जो उसकी गंध, चेहरा, आवाज सब बदल दे... इन सब के बावजूद क्या अगर ध्रुव ठान ले कि उसे चंडिका  का राज पता लगाना है तो क्या वो पता नहीं लगा सकता?.... जिस स्तर का ध्रुव का दिमाग स्थापित गया है उसके लिये ये बांये हाथ का काम है.... आखिर पहले भी उसने हर बार दिमाग का इस्तेमाल करते हुये ही जीत हासिल की‌ है. कई बार परदे के पीछे छुपे विलेन्स का राज फाश किया है... फिर श्वेता/चंडिका के मामले में उसके दिमाग पर सवालिया निशान क्यों लगाने लगते हैं?

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असल बात ये है कि ध्रुव आज तक ये बात इसलिये नहीं जान पाया क्योंकि लेखक ने कभी चाहा नहीं कि वो यह बात जाने..  ध्रुव एक काल्पनिक किरदार है तो उसकी ताकत और कमजोरी सब लेखक की कलम पर निर्भर है. ध्रुव वही सोचेगा वही करेगा जो लेखक के अनुसार उसकी कहानी को आगे बङायेगा और ध्रुव और चंडिका की कहानियों का एक चटपटापन यह भी‌ है कि ध्रुव चंडिका की असलियत नहीं जानता इसलिये उसके साथ मिलकर बिना किसी टेंशन के दुश्मनों की वाट लगा सकगा हैं अगर वो जान जाये कि ये उसकी बहन श्वेता है तो शायद फिर चंडिका का रोल इतना बहादुरी वाला नहीं हो पायेगा क्योंकी ध्रुव उसे ये सब नहीं करने देगा. यह अनभिग्यता ही दोनों के एक साथ काम करने में सहायक है. जिस दिन अ‌नुपम सर ने सोचा कि एक कहनी लिखें जिसमें ध्रुव को ये राज पता चल जाये तो वह ऐसे १०० तरीके दिखा देंगे कि ये राज खुल जाये.

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ये सवाल दो ही टाईप के लोग पूछते होंगेंं...

१) जो मासूम हैं और सच में इस बात को सोचकर हलकान होते होंगे कि आखिर ये पहचान क्यों नहीं रहा.

२) जिनका फेवरिट किरदार कोई और है और वो ध्रुव को कम बताने के लिये उसके दिमाग पर उंगली उठाते होंगे.

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दोनों टाईप वालों से निवेदन है कि कृप्या दिमाग को ज्यादा लोड ना दें... लाईट लें.. कामिक्स पढें..कहानी के मजे लें!

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धन्यवाद