लौट रही है कॉमिक्स
रचनाकार – गौरव कुमार निगम
हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों की छुट्टियां लौट आयी हैं, लेकिन हर साल गर्मियों की छुट्टियों के साथ ही गली गली में दिखाई देने वाली एक चीज धीरे धीरे गायब होती जा रही है…कॉमिक्स।
नब्बे के दशक में, जब ज्यादातर लोगो के पास मनोरंजन के लिए बड़ी मुश्किल से एक अदद शटर वाला ब्लैक एंड वाइट टीवी हुआ करता था जो कि कभी बड़ो के आँख तरेरने पर और अक्सर बिजली ना होने की वजह से बंद ही रहता था तब समय काटने के लिए नौजवानों के लिए लुगदी उपन्यास और बच्चों के लिए कॉमिक्स ही भरोसेमंद सहारा हुआ करते थे। अस्सी और नब्बे का दशक कॉमिक्स इंडस्ट्री का स्वर्णकाल कहा जा सकता है। गर्मियां आते ही गली के कोने की किसी दुकान पर कॉमिक्स सज जाती थी…कुछ एक पतले तार पर लटकाई हुई और बाकी एक ढ़ेर की शक्ल में दुकान के एक कोने में रखी हुई।
तब नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, डोगा, हवलदार बहादुर, क्रुकबांड, चाचा चौधरी जैसे पात्र बच्चों के बीच किसी सुपरस्टार का दर्जा रखते थेI
इंडियन कस्टमर, जो कि अक्सर बच्चे हुआ करते, की परचेजिंग कैपेसिटी कम हुआ करती थी क्यूंकि जेब खर्च सीमित मिलता थाI सो कॉमिक्स ज्यादातर किराये पर ही ला कर पढ़ने का रिवाज था…पतली वाली के 25 पैसे और डाइजेस्ट कॉमिक्स के 50 पैसे पूरे 24 घंटे के लिये तय किराया हुआ करता था, जिसमें देर होने पर बाकायदा डबल किराया वसूलने का भी मौखिक प्रावधान हुआ करता था।
सयाने बच्चे आपस में तीन चार बच्चों का ग्रुप बनाकर एक साथ 3 या 4 कॉमिक्स किराये पर ले आते थे और किसी एक के घर में बैठकर सारी कॉमिक्स पढ़कर अगले दिन वापस कर आते थे…यानी एक कॉमिक्स का किराया देकर एक से ज्यादा कॉमिक्स के मजे ले लिया करते थे। दूकानदार इसके बदले कॉमिक्स के साथ मिलने वाली फ्री आइटम्स जैसे कार्ड्स, स्टिकर, पोस्टर्स वगैरह उन बच्चों को ही औने पौने दाम पर बेचकर अपना प्रॉफिट पूरा कर लेता था
नब्बे के दशक के बाद इंडियन कॉमिक्स इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा चोट घर घर पहुँच चुके केबल टीवी ने पहुंचाईI जो कहानियां चित्रों के रुप में मिलती थी वैसी कहानियां कार्टून शोज के रूप में ज्यादा आकर्षक तरीके से बच्चों के सामने पेश की जाने लगींI जिन किस्सों के लिए दुकान तक दौड़ लगानी पड़ती थी, वो कहानियां घर के एक कमरे में रखे टीवी पर ही मिल जा रही थीI
कॉमिक्स की मांग घटने लगी क्यूंकि बच्चों के माँ बाप को भी दो सौ रुपये महीने में कॉमिक्स के ऊपर खर्च करने से बेहतर केबल टीवी कनेक्शन पर खर्च करना सही लगता थाI कॉमिक्स तो सिर्फ बच्चे या किशोर पढ़ते थे, केबल टीवी सबका मनोरंजन करने में सक्षम था…साथ ही अपने शुरुआती दौर में केबल कनेक्शन रखना भी अपने आप में आज के दौर के लेटेस्ट मोबाइल फ़ोन रखने जैसा स्टेटस सिम्बल थाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री के इस गिरते रुझान के बीच भी राज कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स जैसे कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशनों ने कॉमिक्स छापने और उन्हें बढ़ावा देने का सिलसिला जारी रखाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री को अगली तेज़ चोट सन 2005 के बाद इन्टरनेट के तेज़ी से बढ़ते असर की वजह पहुंचीI
इन्टरनेट ने कॉमिक्स की पाइरेसी करके सर्वसुलभ बना दिया, जिससे कॉमिक्स इंडस्ट्री को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ाI कॉमिक्स से प्रेम और जुनून के नाम पर लोगों ने कॉमिक्स को स्कैन कर के इन्टरनेट पर डालना शुरू कर दियाI बिना कुछ खर्च किये कॉमिक्स हर किसी को पढने के लिए उपलब्ध हो गयी जिसकी वजह से कॉमिक्स और भी महंगी होती चली गयीI
कॉमिक्स इंडस्ट्री के लिए शायद ये सबसे बुरा दौर थाI
कॉमिक्स पब्लिश करना घाटे का बिज़नस बनता जा रहा थाI एक तरफ़ पुरानी कॉमिक्स फ्री में पढने के लिए मिल रही थी दूसरी तरफ नयी कॉमिक्स का महंगा होते जाना उसकी बिक्री पर असर डाल रहा थाI रही सही कसर इन्टरनेट और टीवी ने पूरी कर दी थीI
लेकिन कहते हैं ना कि समस्या जहाँ पैदा होती है, उसका समाधान भी अक्सर वहीँ मिलता हैI
कॉमिक्स इंडस्ट्री ने बदलते वक़्त और तकनीक से पैदा हुई समस्या का हल बदलते वक़्त के हिसाब से बने तौर तरीकों और तकनीक से देना शुरू कियाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री ने नए लेखकों, आर्टिस्टों को मौका देना शुरू किया जो नयी कहानियों के साथ मार्किट में आयेI
कई कॉमिक्स पब्लिशिंग हाउस ने अपनी वेबसाइट और ई कॉमर्स वेबसाइट के ज़रिये कॉमिक्स बेचना शुरू किया जिससे कॉमिक्स छपने से लेकर खरीदने वाले के हाथ में पहुँचने तक के खर्चे कम किये जा सकेंI ‘कॉमिक कॉन’ जैसे इवेंट्स होने शुरू हुए जिससे लोगों के बीच कॉमिक्स को लेकर उत्साह बढ़ाI पुस्तक मेलों में भी कॉमिक पब्लिशर्स जाने लगे जिससे उनकी बिक्री और प्रसार बढ़ाI
अब तक कॉमिक्स सिर्फ बच्चों की चीज मानी जाती थी लेकिन अब वो एक ‘कूल थिंग’ बननी शुरू हो गईI
बीच बीच में ख़बरें आती रहती हैं कि सुपर कमांडो ध्रुव की कहानियों को लेकर सीरियल बन रहा है, (नागराज के कुछ एपिसोड बने भी थे), डोगा पर आधारित फिल्म बन रही है जिसमे कुणाल कपूर डोगा बनने की पूरी तैयारी कर चुके हैं, परमाणु को लेकर वेब सीरीज बन रही हैI ऐसी ख़बरों ने कॉमिक्स पढ़ने वालों के बीच एक नया जोश फूंक दिया हैI
हाल ही में राज कॉमिक्स ने अपना एप्प लांच किया जिसके ज़रिये अब वो आज की नयी पीढ़ी जिनके हाथों का स्मार्टफ़ोन ही उनकी किताबें हैं, को कॉमिक्स पढने की आदत डाल रहे हैंI
हो सकता है किसी दौर में हमारी किताबों में, अलमारियों में छुपी रहने वाली प्रिंट कॉमिक्स आने वाले वक़्त में छपना ही बंद हो जाये, लेकिन ‘कॉमिक्स’ लौट रही हैं और उनका भविष्य पहले से ज्यादा उज्जवल हैI
रचनाकार – गौरव कुमार निगम
हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों की छुट्टियां लौट आयी हैं, लेकिन हर साल गर्मियों की छुट्टियों के साथ ही गली गली में दिखाई देने वाली एक चीज धीरे धीरे गायब होती जा रही है…कॉमिक्स।
नब्बे के दशक में, जब ज्यादातर लोगो के पास मनोरंजन के लिए बड़ी मुश्किल से एक अदद शटर वाला ब्लैक एंड वाइट टीवी हुआ करता था जो कि कभी बड़ो के आँख तरेरने पर और अक्सर बिजली ना होने की वजह से बंद ही रहता था तब समय काटने के लिए नौजवानों के लिए लुगदी उपन्यास और बच्चों के लिए कॉमिक्स ही भरोसेमंद सहारा हुआ करते थे। अस्सी और नब्बे का दशक कॉमिक्स इंडस्ट्री का स्वर्णकाल कहा जा सकता है। गर्मियां आते ही गली के कोने की किसी दुकान पर कॉमिक्स सज जाती थी…कुछ एक पतले तार पर लटकाई हुई और बाकी एक ढ़ेर की शक्ल में दुकान के एक कोने में रखी हुई।
तब नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, डोगा, हवलदार बहादुर, क्रुकबांड, चाचा चौधरी जैसे पात्र बच्चों के बीच किसी सुपरस्टार का दर्जा रखते थेI
इंडियन कस्टमर, जो कि अक्सर बच्चे हुआ करते, की परचेजिंग कैपेसिटी कम हुआ करती थी क्यूंकि जेब खर्च सीमित मिलता थाI सो कॉमिक्स ज्यादातर किराये पर ही ला कर पढ़ने का रिवाज था…पतली वाली के 25 पैसे और डाइजेस्ट कॉमिक्स के 50 पैसे पूरे 24 घंटे के लिये तय किराया हुआ करता था, जिसमें देर होने पर बाकायदा डबल किराया वसूलने का भी मौखिक प्रावधान हुआ करता था।
सयाने बच्चे आपस में तीन चार बच्चों का ग्रुप बनाकर एक साथ 3 या 4 कॉमिक्स किराये पर ले आते थे और किसी एक के घर में बैठकर सारी कॉमिक्स पढ़कर अगले दिन वापस कर आते थे…यानी एक कॉमिक्स का किराया देकर एक से ज्यादा कॉमिक्स के मजे ले लिया करते थे। दूकानदार इसके बदले कॉमिक्स के साथ मिलने वाली फ्री आइटम्स जैसे कार्ड्स, स्टिकर, पोस्टर्स वगैरह उन बच्चों को ही औने पौने दाम पर बेचकर अपना प्रॉफिट पूरा कर लेता था
नब्बे के दशक के बाद इंडियन कॉमिक्स इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा चोट घर घर पहुँच चुके केबल टीवी ने पहुंचाईI जो कहानियां चित्रों के रुप में मिलती थी वैसी कहानियां कार्टून शोज के रूप में ज्यादा आकर्षक तरीके से बच्चों के सामने पेश की जाने लगींI जिन किस्सों के लिए दुकान तक दौड़ लगानी पड़ती थी, वो कहानियां घर के एक कमरे में रखे टीवी पर ही मिल जा रही थीI
कॉमिक्स की मांग घटने लगी क्यूंकि बच्चों के माँ बाप को भी दो सौ रुपये महीने में कॉमिक्स के ऊपर खर्च करने से बेहतर केबल टीवी कनेक्शन पर खर्च करना सही लगता थाI कॉमिक्स तो सिर्फ बच्चे या किशोर पढ़ते थे, केबल टीवी सबका मनोरंजन करने में सक्षम था…साथ ही अपने शुरुआती दौर में केबल कनेक्शन रखना भी अपने आप में आज के दौर के लेटेस्ट मोबाइल फ़ोन रखने जैसा स्टेटस सिम्बल थाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री के इस गिरते रुझान के बीच भी राज कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स जैसे कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशनों ने कॉमिक्स छापने और उन्हें बढ़ावा देने का सिलसिला जारी रखाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री को अगली तेज़ चोट सन 2005 के बाद इन्टरनेट के तेज़ी से बढ़ते असर की वजह पहुंचीI
इन्टरनेट ने कॉमिक्स की पाइरेसी करके सर्वसुलभ बना दिया, जिससे कॉमिक्स इंडस्ट्री को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ाI कॉमिक्स से प्रेम और जुनून के नाम पर लोगों ने कॉमिक्स को स्कैन कर के इन्टरनेट पर डालना शुरू कर दियाI बिना कुछ खर्च किये कॉमिक्स हर किसी को पढने के लिए उपलब्ध हो गयी जिसकी वजह से कॉमिक्स और भी महंगी होती चली गयीI
कॉमिक्स इंडस्ट्री के लिए शायद ये सबसे बुरा दौर थाI
कॉमिक्स पब्लिश करना घाटे का बिज़नस बनता जा रहा थाI एक तरफ़ पुरानी कॉमिक्स फ्री में पढने के लिए मिल रही थी दूसरी तरफ नयी कॉमिक्स का महंगा होते जाना उसकी बिक्री पर असर डाल रहा थाI रही सही कसर इन्टरनेट और टीवी ने पूरी कर दी थीI
लेकिन कहते हैं ना कि समस्या जहाँ पैदा होती है, उसका समाधान भी अक्सर वहीँ मिलता हैI
कॉमिक्स इंडस्ट्री ने बदलते वक़्त और तकनीक से पैदा हुई समस्या का हल बदलते वक़्त के हिसाब से बने तौर तरीकों और तकनीक से देना शुरू कियाI
कॉमिक्स इंडस्ट्री ने नए लेखकों, आर्टिस्टों को मौका देना शुरू किया जो नयी कहानियों के साथ मार्किट में आयेI
कई कॉमिक्स पब्लिशिंग हाउस ने अपनी वेबसाइट और ई कॉमर्स वेबसाइट के ज़रिये कॉमिक्स बेचना शुरू किया जिससे कॉमिक्स छपने से लेकर खरीदने वाले के हाथ में पहुँचने तक के खर्चे कम किये जा सकेंI ‘कॉमिक कॉन’ जैसे इवेंट्स होने शुरू हुए जिससे लोगों के बीच कॉमिक्स को लेकर उत्साह बढ़ाI पुस्तक मेलों में भी कॉमिक पब्लिशर्स जाने लगे जिससे उनकी बिक्री और प्रसार बढ़ाI
अब तक कॉमिक्स सिर्फ बच्चों की चीज मानी जाती थी लेकिन अब वो एक ‘कूल थिंग’ बननी शुरू हो गईI
बीच बीच में ख़बरें आती रहती हैं कि सुपर कमांडो ध्रुव की कहानियों को लेकर सीरियल बन रहा है, (नागराज के कुछ एपिसोड बने भी थे), डोगा पर आधारित फिल्म बन रही है जिसमे कुणाल कपूर डोगा बनने की पूरी तैयारी कर चुके हैं, परमाणु को लेकर वेब सीरीज बन रही हैI ऐसी ख़बरों ने कॉमिक्स पढ़ने वालों के बीच एक नया जोश फूंक दिया हैI
हाल ही में राज कॉमिक्स ने अपना एप्प लांच किया जिसके ज़रिये अब वो आज की नयी पीढ़ी जिनके हाथों का स्मार्टफ़ोन ही उनकी किताबें हैं, को कॉमिक्स पढने की आदत डाल रहे हैंI
हो सकता है किसी दौर में हमारी किताबों में, अलमारियों में छुपी रहने वाली प्रिंट कॉमिक्स आने वाले वक़्त में छपना ही बंद हो जाये, लेकिन ‘कॉमिक्स’ लौट रही हैं और उनका भविष्य पहले से ज्यादा उज्जवल हैI